ओवरसाइट बोर्ड ने पाकिस्तानी संसद में दिए गए भाषण की रिपोर्टिंग के केस में Meta के फ़ैसले का कायम रखा

ओवरसाइट बोर्ड ने पाकिस्तान में एक न्यूज़ आउटलेट द्वारा शेयर की गई उस पोस्ट को बनाए रखने के फ़ैसले को कायम रखा जिसमें देश की संसद में एक राजनेता के भाषण का वीडियो था. वह पोस्ट हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करती क्योंकि वह “जागरूकता फैलाने” से जुड़े अपवाद के अंतर्गत आती है. इसके अलावा, अगर पूरे भाषण को देखा जाए, तो बलिदान किए जा रहे या “लटकाए” जा रहे सरकारी अधिकारियों के बारे में राजनेता के रेफ़रेंस प्रतीकात्मक (गैर-शाब्दिक) हैं जिनका उद्देश्य पाकिस्तान के राजनैतिक संकट और संस्थाओं के बीच जवाबदेही की कमी की ओर ध्यान खींचना है. बोर्ड मानता है कि राष्ट्रीय चुनावों के पहले अस्थिरता के समय में, ऐसे भाषण की रक्षा करना बुनियादी काम है.

केस की जानकारी

मई 2023 में, पाकिस्तान के एक स्वतंत्र न्यूज़ आउटलेट ने अपने Facebook पेज पर एक पाकिस्तानी राजनेता का भाषण पोस्ट किया. यह भाषण देश की संसद में उर्दू भाषा में दिया गया था. इस भाषण में राजनेता ने जो रेफ़रेंस दिए, उन्हें उन्होंने मिस्र की प्राचीन “परंपरा” बताया जिसमें लोगों ने नील नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए अपना बलिदान दिया था. राजनेता ने इस रेफ़रेंस का उपयोग करते हुए कहा कि उनके विचार से आज के पाकिस्तान में इस बलिदान की ज़रूरत है. उन्होंने अपने एक पुराने भाषण की भी याद दिलाई जिसमें उन्होंने कहा था कि देश तब तक बेहतर हालत में नहीं आ सकता जब तक कि सेना सहित सरकारी अधिकारियों को “लटका” नहीं दिया जाता. राजनेता ने खुद को और अपने सहयोगियों को भी उन अधिकारियों में शामिल किया जिन्हें बलिदान देना चाहिए, यह कहते हुए कि अभी देश में जो हो रहा है, उसके लिए वे सभी ज़िम्मेदार हैं. उनके भाषण में जारी राजनैतिक संकट की ओर इशारा किया गया था और सरकारी और सैन्य संस्थाओं की आलोचना की गई थी. पोस्ट को लगभग 20,000 बार शेयर किया गया था और उसे 40,000 रिएक्शन मिले.

स्थानीय न्यूज़ आउटलेट ने देश में होने वाले आम चुनावों के पहले इस वीडियो को पोस्ट किया जो 2023 में होने वाले थे, लेकिन फ़रवरी 2024 तक टाल दिए गए. राजनैतिक अस्थिरता के समय में, जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना के बीच बढ़ता हुआ टकराव देखा गया, देश में राजनैतिक विरोध प्रदर्शन और बढ़ता हुआ ध्रुवीकरण देखा गया. राजनैतिक विरोधियों की धरपकड़ की गई और बलूचिस्तान में, जो इस राजनेता की पार्टी का गढ़ है, सरकार द्वारा दमन खास तौर पर स्पष्ट देखा गया.

2023 में तीन माह की अवधि के दौरान, Meta के ऑटोमेटेड सिस्टम ने 45 बार इस पोस्ट की पहचान संभावित तौर पर उल्लंघन करने वाले कंटेंट के रूप में की. दो ह्यूमन रिव्यूअर्स ने इस पोस्ट के बारे में अलग-अलग फ़ैसले दिए, एक ने इसे उल्लंघन नहीं करने वाला माना जबकि दूसरे ने पाया कि यह पोस्ट हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी के नियमों का उल्लंघन करती है. जिस अकाउंट से कंटेंट को शेयर किया गया था, वह Meta के क्रॉस-चेक प्रोग्राम का भाग है, इसलिए पोस्ट को अतिरिक्त लेवल के रिव्यू के लिए मार्क किया गया था. अंततः Meta के पॉलिसी और विषय विशेषज्ञों ने पोस्ट को उल्लंघन नहीं करने वाला पाया. Meta ने इस केस को बोर्ड को रेफ़र किया क्योंकि राजनैतिक भाषणों के संबंध में उपयोग किए जाते समय यह केस अभिव्यक्ति और सुरक्षा की उसकी वैल्यू के बीच तनाव दर्शाता है.

मुख्य निष्कर्ष

बोर्ड ने पाया कि पोस्ट, हिंसा और उकसावे से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करती क्योंकि इसे एक मीडिया आउटलेट द्वारा शेयर किया गया था जो दूसरों तक जानकारी पहुँचाना चाहता है और इसलिए यह पोस्ट “जागरूकता फैलाने” से जुड़े अपवाद के तहत आती है. चुनावों से पहले संसद में दिए गए इस भाषण में राजनेता ने निसंदेह रूप से जनहित के मुद्दों पर बात की, जिनमें राजनीति और सार्वजनिक डोमेन की घटनाएँ शामिल थीं. स्थानीय न्यूज़ आउटलेट द्वारा राष्ट्रीय अस्थिरता के समय में शेयर किए गए इस भाषण को “खास तौर पर उच्च” सुरक्षा मिलनी चाहिए थी. इसके अलावा, पोस्ट के कैप्शन में राजनेता के भाषण से सहमति या समर्थन नहीं जताया गया था, बल्कि इसमें भाषण पर संसद में हुई तीव्र प्रतिक्रिया की ओर इशारा किया गया था.

मई 2023 में पोस्ट को शेयर करने के समय, “जागरूकता फैलाने” से जुड़ा अपवाद सिर्फ़ रिव्यूअर्स के लिए Meta की आंतरिक गाइडलाइन में शामिल किया गया था और सार्वजनिक नहीं था, लेकिन बोर्ड के एक पहले के सुझाव का पालन करते हुए इसे तब से कम्युनिटी स्टैंडर्ड में शामिल किया गया है.

बोर्ड ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि जब राजनेताओं के हिंसा भड़का सकने वाले भाषणों पर हिंसा और उकसावे से जुड़ी पॉलिसी लागू करते समय संदर्भ का आकलन करना महत्वपूर्ण होता है. इस केस में, पोस्ट से ऐसा कोई प्रामाणिक खतरा नहीं था जिससे मौत हो सकती हो. यह पोस्ट एक राजनेता के भाषण की एक न्यूज़ रिपोर्ट थी जिसमें उसने पाकिस्तान के राजनैतिक संकट पर कमेंट करने के लिए प्रतीकात्मक भाषा का उपयोग किया था. अधिकारियों को “लटकाने” और मिस्र में बलिदान की प्राचीन परंपरा की तुलना, स्पष्ट रूप से रूपक और राजनैतिक अतिशयोक्ति थी, न कि कोई वास्तविक धमकी. बोर्ड ने जिन विशेषज्ञों से परामर्श किया, उन्होंने यह कन्फ़र्म किया कि पाकिस्तानी राजनेता अक्सर उन मुद्दों पर लोगों का ध्यान खींचने के लिए अत्यंत आक्रामक और भड़काऊ भाषा का उपयोग करते हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण समझते हैं. राजनेता ने अपने भाषण में किसी खास टार्गेट का नाम नहीं लिया; इसके बजाय, उन्होंने खुद सहित सामान्य सरकारी अधिकारियों का उल्लेख किया. समग्र रूप से देखे जाने पर, उनके भाषण में व्यापक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करते हुए सरकारी अधिकारियों के बीच जवाबदेही के लिए तत्काल कार्रवाई करने की ज़रूरत की बात कही गई है. उन व्यापक मुद्दों में बलूचिस्तान के लोगों के खिलाफ़ मानवाधिकार के उल्लंघन का मुद्दा शामिल है.

इसलिए बोर्ड मानता है कि चुनावों के पहले ऐसे भाषण की सुरक्षा करना बुनियादी ज़रूरत है.

ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला

ओवरसाइट बोर्ड ने कंटेंट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा है.

बोर्ड ने कोई नया सुझाव नहीं दिया लेकिन उसने ब्राज़ील के जनरल का भाषण फ़ैसले में दिए अपने सुझाव सं. 1 को यह सुनिश्चित करने के लिए दोहराया कि चुनावों से पहले जिन बयानों का अत्यधिक जनहित महत्व होता है, उनकी सुरक्षा Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर की जानी चाहिए. खास तौर पर, बोर्ड ने कहा कि Meta “मीट्रिक बनाने और शेयर करने सहित चुनाव के संबंध में कंपनी के प्रयासों का मूल्यांकन करने” के लिए फ़्रेमवर्क के अपने क्रियान्वयन में तेज़ी लाए. वैश्विक बहुसंख्यक देशों सहित 2024 में बड़ी संख्या में चुनावों को देखते हुए या खास तौर पर महत्वपूर्ण है.

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