ओवरसाइट बोर्ड ने 'भारत के यौन उत्पीड़न के वीडियो' के केस में Meta का फ़ैसला कायम रखा है

ओवरसाइट बोर्ड ने Instagram पर एक ऐसी पोस्ट रीस्टोर करने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा जिसमें कुछ पुरुषों द्वारा एक महिला पर यौन हमला करने का वीडियो था. बोर्ड ने पाया है कि Meta की “ख़बरों में रहने लायक होने के कारण दी जाने वाली छूट” इस तरह के केस का बड़े पैमाने पर समाधान करने के लिए पर्याप्त नहीं है और कंपनी को अपनी वयस्क यौन शोषण से जुड़ी पॉलिसी का अपवाद प्रस्तुत करना चाहिए.

केस की जानकारी

मार्च 2022 में, खुद को दलितों की बात करने वाला प्लेटफ़ॉर्म बताने वाले एक Instagram अकाउंट ने भारत में हुई एक घटना का वीडियो पोस्ट किया, जिसमें कुछ पुरुष किसी महिला की पिटाई करते दिखाई दे रहे हैं. “दलित” लोगों को पहले “अछूत” कहा जाता था और जाति व्यवस्था में उनपर अत्याचार हुए हैं. वीडियो में महिला का चेहरा दिखाई नहीं दे रहा है और उसमें कोई नग्नता भी नहीं है. वीडियो के साथ में दिए गए टेक्स्ट में कहा गया था कि “आदिवासी महिला” पर कुछ पुरुषों ने सार्वजनिक रूप से यौन हमला किया और यह वीडियो वायरल हुआ था. “आदिवासियों” को भारत के मूल निवासी भी कहा जाता है.

एक यूज़र द्वारा पोस्ट की रिपोर्ट किए जाने के बाद, Meta ने वयस्क यौन शोषण से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन करने के कारण उसे हटा दिया. यह पॉलिसी ऐसे कंटेंट को प्रतिबंधित करती है जिसमें “यौन हिंसा, यौन हमला या यौन शोषण दिखाया जाता है, उनकी धमकी दी जाती है या उन्हें बढ़ावा दिया जाता है.”

Meta के कर्मचारी ने Instagram से जानकारी मिलने के बाद आंतरिक रिपोर्टिंग चैनल के ज़रिए कंटेंट का हटाया जाना फ़्लैग किया. Meta की आंतरिक टीम ने कंटेंट का फिर से रिव्यू किया और उसे “ख़बरों में रहने लायक होने के कारण छूट” दी. इससे अन्यथा उल्लंघन करने वाले ऐसे कंटेंट को Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर बने रहने की छूट मिलती है जो ख़बरों में रहने लायक और जनहित में है. Meta ने कंटेंट को रीस्टोर कर दिया, उसपर चेतावनी स्क्रीन लगा दी जो 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों को उसे देखने से रोकती है और बाद में इस केस को बोर्ड को रेफ़र कर दिया.

मुख्य निष्कर्ष

बोर्ड ने पाया कि चेतावनी स्क्रीन के साथ इस कंटेंट को प्लेटफ़ॉर्म पर रीस्टोर करना, Meta के मूल्यों और मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के अनुसार है.

बोर्ड यह मानता है कि बिना सहमति का यौन स्पर्श दर्शाने वाला कंटेंट दिखाने से व्यक्तिगत पीड़ितों और अन्य लोगों को नुकसान का गंभीर खतरा हो सकता है क्योंकि, उदाहरण के लिए, इससे अपराधियों को प्रोत्साहन मिलता है और हिंसा की स्वीकार्यता बढ़ती है.

भारत में दलित और आदिवासी लोगों से, ख़ास तौर पर महिलाओं से, अत्यंत भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है और उनके खिलाफ़ अपराध बढ़ते जा रहे हैं. ऐसी हिंसा और भेदभाव को डॉक्यूमेंट करने का सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण साधन है और इस केस का कंटेंट जागरूकता बढ़ाने के लिए पोस्ट किया गया लगता है. इसलिए पोस्ट का जनहित में काफ़ी महत्व है और उसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के तहत ज़्यादा सुरक्षा प्राप्त है.

यह देखते हुए कि वीडियो में आपत्तिजनक कंटेंट या नग्नता नहीं है और बोर्ड के अधिकांश मेंबर्स ने यह पाया कि वीडियो में पीड़ित को पहचाना नहीं जा सकता, अधिकांश मेंबर्स का मानना है कि चेतावनी स्क्रीन के साथ वीडियो को प्लेटफ़ॉर्म पर बने रहने देने से नुकसान का कोई खतरा नहीं है. अगर पीड़ित को पहचाना नहीं जा सकता है, तो नुकसान का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. चेतावनी स्क्रीन, जो 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों को वीडियो देखने से रोकती है, पीड़ित की गरिमा की रक्षा करने में मदद करती है और बच्चों और यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को परेशान करने या चोट पहुँचाने वाले कंटेंट के संपर्क में आने से बचाती है.

बोर्ड इस बात से सहमत है कि कंटेंट, Meta की वयस्क यौन शोषण से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन करता है और यह कि इसे ख़बरों में रहने लायक होने के कारण छूट दी जा सकती है. हालाँकि, बोर्ड के “सूडान का आपत्तिजनक वीडियो” केस में व्यक्त की गई चिंताओं की ही तरह, बोर्ड ने पाया कि इस तरह के केस से निपटने में ख़बरों में रहने लायक होने के कारण छूट देना बड़े पैमाने पर पर्याप्त नहीं है.

बहुत कम मामलों में ख़बरों में रहने लायक होने के कारण छूट दी जाती है. 1 जून 2022 को समाप्त होने वाले वर्ष में, Meta ने इसे वैश्विक रूप से सिर्फ़ 68 बार उपयोग किया. यह आँकड़ा बोर्ड के सुझाव के बाद सार्वजनिक किया गया था. उनमें से एक छोटा सा भाग ही वयस्क यौन शोषण से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के संबंध में जारी किया गया था. ख़बरों में रहने लायक होने के कारण छूट सिर्फ़ Meta की आंतरिक टीमों द्वारा दी जा सकती है. हालाँकि, यह केस बताता है कि उन टीमों की प्रासंगिक कंटेंट एस्केलेट करने की प्रोसेस भरोसेमंद नहीं है. Meta के कर्मचारी ने Instagram से जानकारी मिलने के बाद आंतरिक रिपोर्टिंग चैनल के ज़रिए कंटेंट का हटाया जाना फ़्लैग किया.

ख़बरों में रहने लायक होने के कारण दी जाने वाली छूट स्पष्ट नहीं है, वह छूट देने वाले व्यक्ति के विवेक पर अत्यधिक निर्भर है और बड़े पैमाने पर इसका एक जैसा उपयोग सुनिश्चित नहीं किया जा सकता. न ही इसमें यह आकलन करने की स्पष्ट शर्तें शामिल हैं कि वयस्क यौन शोषण से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन करने वाले कंटेंट से किस नुकसान की संभावना है. बोर्ड ने पाया कि Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के लिए यह ज़रूरी है कि वह स्पष्ट स्टैंडर्ड और इस केस जैसे केसों के लिए ज़्यादा प्रभावी एन्फ़ोर्समेंट प्रोसेस उपलब्ध कराए. पॉलिसी में एक अपवाद की ज़रूरत है जिसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सके और जिसे वयस्क यौन शोषण से जुड़ी पॉलिसी के अनुसार बनाया गया हो. इसमें जागरूकता फैलाने वाली पोस्ट को हिंसा या भेदभाव करने वाली पोस्ट से अलग करने का स्पष्ट मार्गदर्शन होना चाहिए और इससे Meta को बड़े पैमाने पर प्रतिस्पर्धी अधिकारों में संतुलन बनाने में मदद मिलनी चाहिए.

ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला

ओवरसाइट बोर्ड ने चेतावनी स्क्रीन के साथ पोस्ट को रीस्टोर करने का Meta का फ़ैसला कायम रखा.

बोर्ड ने Meta को सुझाव भी दिया कि वह:

  • वयस्क यौन शोषण से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड में बिना सहमति के यौन स्पर्श के लिए एक अपवाद शामिल करे. इसका उपयोग सिर्फ़ Meta की आंतरिक टीमों द्वारा ही किया जा सकेगा और ऐसे कंटेंट को परमिशन देगा जिसमें पीड़ित को पहचाना नहीं जा सकता और जहाँ Meta यह माने कि कंटेंट को जागरूकता फैलाने के लिए शेयर किया गया है, सनसनी फैलाने के लिए शेयर नहीं किया गया है और उसमें नग्नता नहीं है.
  • बड़े पैमाने पर रिव्यू करने वाले रिव्यूअर्स के लिए अपने आंतरिक मार्गदर्शन को अपडेट करके यह शामिल करे कि वयस्क यौन शोषण से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत रिव्यू किए गए ऐसे कंटेंट को कब एस्केलेट करना है जो पॉलिसी में ऊपर बताई गई छूट के योग्य हो सकता है.

और जानकारी के लिए

इस केस का पूरा फ़ैसला पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

इस केस में लोगों की ओर से आए कमेंट का सारांश पढ़ने के लिए, कृपया नीचे अटैचमेंट पर क्लिक करें.

समाचार पर लौटें