ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के फ़ैसले को बदला: केस 2021-007-FB-UA

ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत बर्मी भाषा की एक पोस्ट को हटाने के Facebook के फ़ैसले को बदल दिया है. बोर्ड ने पाया कि वह पोस्ट चीनी लोगों के लिए नहीं बल्कि चीन देश के लिए लिखी गई थी. उसमें ख़ास तौर पर म्यांमार में चीनी सरकार की भूमिका के बारे में राजनैतिक चर्चा करते हुए हांगकांग में चीनी सरकार की पॉलिसी के संदर्भ में अभद्र भाषा का उपयोग किया गया था.

केस की जानकारी

अप्रैल 2021 में शायद म्यांमार में रहने वाले एक Facebook यूज़र ने अपनी टाइमलाइन पर बर्मी भाषा में एक पोस्ट लिखी थी. उस पोस्ट में 1 फ़रवरी 2021 को म्यांमार में हुए तख्तापलट के बाद म्यांमार की सेना के वित्तीय स्रोतों को सीमित करने के तरीकों के बारे में चर्चा की गई थी. उसमें प्रस्ताव दिया गया था कि कर से होने वाली आय, तख्तापलट के विरोधी जनप्रतिनिधियों (सांसदों) के समूह Committee Representing Pyidaungsu Hlutaw (CRPH) को दी जानी चाहिए. उस पोस्ट को लगभग पाँच लाख लोगों ने देखा लेकिन एक भी Facebook यूज़र ने उसकी रिपोर्ट नहीं की.

Facebook ने उस यूज़र की पोस्ट के कथित उल्लंघन करने वाले हिस्से का अनुवाद इस तरह किया: “Hong Kong people, because the fucking Chinese tortured them, changed their banking to UK, and now (the Chinese) they cannot touch them.” (“चूतिए चीनियों ने हांगकांग के लोगों को इतना प्रताड़ित किया कि उन्होंने अपनी बैंकिंग साझेदारी यूके के साथ कर ली और अब वे (चीनी) उन्हें छू भी नहीं सकते.”) Facebook ने अपने नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत उस पोस्ट को हटा दिया था. यह कम्युनिटी स्टैंडर्ड किसी व्यक्ति या लोगों के समूह को उनकी नस्लीयता, जाति या राष्ट्रीय मूल के आधार पर निशाना बनाने वाले ऐसे कंटेंट को प्रतिबंधित करता है, जिसमें “अभद्र शब्द या अपमानित करने के उद्देश्य से कहे जाने वाले वाक्यांश” शामिल होते हैं.

जिन चार कंटेंट रिव्यूअर्स ने उस पोस्ट का रिव्यू किया, वे सभी इस बात से सहमत थे कि उस पोस्ट में Facebook के नियमों का उल्लंघन किया गया था. बोर्ड से की गई अपील में यूज़र ने बताया कि उन्होंने वह कंटेंट “क्रूर सैन्य शासन को रोकने” के लिए पोस्ट किया था.

मुख्य निष्कर्ष

यह केस बताता है कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ीं पॉलिसी लागू करते समय संदर्भ को ध्यान में रखना कितना महत्वपूर्ण होता है, इसके अलावा यह केस राजनैतिक वक्तव्यों की सुरक्षा के महत्व को भी रेखांकित करता है. म्यांमार में फ़रवरी 2021 में हुए तख्तापलट के कारण और वहाँ कम्युनिकेशन के माध्यमों में Facebook की मुख्य भूमिका होने के चलते यह बात ख़ास तौर पर म्यांमार के लिए ज़्यादा प्रासंगिक है.

उस पोस्ट में बर्मी भाषा के एक वाक्यांश “$တရုတ်” का उपयोग किया गया था, Facebook ने इसका अनुवाद “fucking Chinese” (“चूतिए चीनी”) (या “sout ta-yote”) किया. Facebook के अनुसार “ta-yote” शब्द “सांस्कृतिक और भाषाई तौर पर चीन देश और चीनी लोगों, दोनों की पहचान बताता है और इस शब्द के दोनों अर्थ निकलते हैं.” Facebook ने बताया कि इस शब्द की प्रकृति को और इस बात को ध्यान में रखकर कि यूज़र ने “यह स्पष्ट तौर पर नहीं बताया था कि उन्होंने यह शब्द चीन देश/चीनी सरकार के लिए उपयोग किया है,” Facebook ने यह माना कि “यूज़र कहीं ना कहीं अपनी पोस्ट में चीनी लोगों का संदर्भ दे रहा है.” इसीलिए Facebook ने अपने नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत इस पोस्ट को हटा दिया.

बर्मी भाषा में इस शब्द का उपयोग किसी देश या उस देश के लोगों, दोनों के लिए किया जाता है, इसलिए निहित उद्देश्य को समझने में संदर्भ की भूमिका अहम होती है. कई सारे कारकों से बोर्ड को यह विश्वास हो गया कि उस यूज़र का निशाना चीनी लोग नहीं बल्कि चीन देश था.

पोस्ट का वह हिस्सा जिसमें कथित तौर पर Facebook के नियमों का उल्लंघन किया गया था, उसमें हांगकांग में चीन की वित्तीय पॉलिसी को “प्रताड़ना” या “दमन” कहा गया था, न कि म्यांमार में रह रहे व्यक्तियों या चीनी लोगों द्वारा किए गए किसी काम को. बोर्ड के दोनों अनुवादकों ने संकेत दिया कि इस मामले में “ta-yote” शब्द, उस देश के लिए उपयोग किया गया था. जब उनसे पूछा गया कि क्या इस संदर्भ में किसी अस्पष्टता की कोई संभावना है, तो अनुवादकों ने बताया कि वे अपने निष्कर्ष के बारे में पूरी तरह आश्वस्त हैं. बोर्ड के अनुवादकों ने यह भी बताया कि उस पोस्ट में ऐसे शब्द हैं, जिनका उपयोग आम तौर पर म्यांमार की सरकार और चीनी दूतावास एक दूसरे को संबोधित करने के लिए करते हैं. इसके अलावा, उस पोस्ट को पाँच लाख लोगों ने देखा और 6000 से ज़्यादा लोगों ने शेयर किया लेकिन एक भी यूज़र ने उसकी रिपोर्ट नहीं की. लोगों के कमेंट से भी उस पोस्ट का लहज़ा राजनैतिक विचार-विमर्श वाला लगा.

चूँकि उस पोस्ट में लोगों को उनकी नस्लीयता, जाति या राष्ट्रीय मूल के आधार पर निशाना नहीं बनाया गया था बल्कि वह एक देश पर लक्षित थी, इसलिए बोर्ड ने पाया कि वह Facebook के नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं कर रही थी.

ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला

ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के उस कंटेंट को हटाने के फ़ैसले को बदल दिया है और उस पोस्ट को रीस्टोर करने के लिए कहा है.

पॉलिसी से जुड़े सुझाव देते हुए बोर्ड ने Facebook को कहा कि वह:

  • सुनिश्चित करे कि आंतरिक रूप से लागू किए जाने वाले नियम उसी भाषा में उपलब्ध हों, जिस भाषा में कंटेंट मॉडरेटर कंटेंट का रिव्यू करते हैं. जहाँ प्राथमिकता देना ज़रूरी हो, वहाँ Facebook को सबसे पहले उन संदर्भों पर ध्यान देना चाहिए, जहाँ मानवाधिकारों का हनन होने के खतरे सबसे ज़्यादा हों.

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