ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के मूल फ़ैसले को बदल दिया है: केस 2021-009-FB-UA

ओवरसाइट बोर्ड इस बात से सहमत है कि Facebook पर मौजूद उस कंटेंट को हटाने के अपने मूल फ़ैसले को बदलकर Facebook ने सही काम किया था, जिसमें फ़िलिस्तीनी समूह हमास की सैन्य इकाई इज़ अल-दीन अल-क़ासम ब्रिगेड की ओर से दी गई हिंसा की धमकी के बारे में एक समाचार पोस्ट शेयर की गई थी. Facebook ने शुरूआत में खतरनाक लोगों और संगठनों से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत उस कंटेंट को हटा दिया था और बोर्ड द्वारा इस केस को रिव्यू के लिए चुनने के बाद इसे रीस्टोर कर दिया था. बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि कंटेंट को हटाने से ऑफ़लाइन नुकसान कम नहीं हुआ लेकिन इससे सार्वजनिक हित के एक मुद्दे पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिबंधित हुई.

केस की जानकारी

10 मई 2021 को मिस्र के 15000 से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स वाले एक Facebook यूज़र ने अल जज़ीरा अरेबिक नाम के वेरिफ़ाई किए गए पेज से एक पोस्ट शेयर की थी जिसमें अरबी भाषा में लिखा टेक्स्ट और एक फ़ोटो थी.

फ़ोटो में दो पुरुष सैन्य वर्दी पहने दिखाई दे रहे हैं, उनके चेहरे ढँके हुए हैं और उन्होंने अल-क़ासम ब्रिगेड के चिह्न वाले हेडबैंड पहने हुए हैं. टेक्स्ट में कहा गया है कि "कॉमन रूम में विरोधी लीडरशिप कब्ज़ा करने वाले पक्ष को अल-अक्सा मस्जिद और शेख़ जर्राह के आस-पास के इलाकों से उसके सैनिक हटाने के लिए शाम 6 बजे की मोहलत देता है, अन्यथा अब चेतावनी दे दी गई है, और अब कुछ भी होने पर चेतावनी देने वाले की ज़िम्मेदारी नहीं रहेगी. अबु ऊबैदा - प्रवक्ता, अल-क़ासम ब्रिगेड सेना" यूज़र ने अल जज़ीरा की पोस्ट शेयर करते हुए उसके कैप्शन में अरबी भाषा में केवल एक शब्द “Ooh” (ओह) लिखा था. अल-क़ासम ब्रिगेड और उसके प्रवक्ता अबु ऊबैदा, दोनों को Facebook के खतरनाक लोगों और संगठनों से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत खतरनाक चिह्नित किया गया है.

Facebook ने इस पॉलिसी का उल्लंघन करने के कारण उस कंटेंट को हटा दिया था, जिसके बाद यूज़र ने इस केस की अपील बोर्ड को की. बोर्ड द्वारा इस केस को चुनने के परिणामस्वरूप Facebook ने यह निष्कर्ष निकाला कि उसने उस कंटेंट को गलती से हटा दिया था और इसके बाद उसे रीस्टोर कर दिया.

मुख्य निष्कर्ष

बोर्ड द्वारा इस केस को चुनने के बाद Facebook ने यह पाया कि उस कंटेंट से खतरनाक लोगों और संगठनों से जुड़े उसके नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ था क्योंकि उसमें अल-क़ासम ब्रिगेड या हमास की प्रशंसा, समर्थन या प्रतिनिधित्व नहीं किया गया था. Facebook यह नहीं बता पाया कि दो ह्यूमन रिव्यूअर्स ने शुरुआत में यह फ़ैसला क्यों लिया कि उस कंटेंट से इस पॉलिसी का उल्लंघन हुआ था, क्योंकि मॉडरेटर्स को कंटेंट से जुड़े अलग-अलग फ़ैसले लेने के पीछे के अपने तर्कों का रिकॉर्ड रखना ज़रूरी नहीं होता है.

बोर्ड ने यह माना कि उस कंटेंट में किसी वैध समाचार आउटलेट के तात्कालिक सार्वजनिक चिंता के मामले से संबंधित समाचार का फिर से प्रकाशन शामिल है. अल जज़ीरा की ओर से शेयर की गई मूल पोस्ट को कभी भी हटाया नहीं गया था और अल-क़ासम ब्रिगेड की हिंसा की धमकी को कहीं और व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया था. आम तौर पर लोगों के पास समाचारों को फिर से पोस्ट करने का उतना ही अधिकार होता है, जितना कि मीडिया संगठनों के पास उन्हें प्रकाशित करने का होता है.

इस केस में यूज़र ने बताया कि उनका उद्देश्य अपने फ़ॉलोअर्स को मौजूदा महत्वपूर्ण मुद्दे के बारे में अपडेट देना था और उनके द्वारा "Ooh" (ओह) की अभिव्यक्ति जोड़ना भी एक निष्पक्ष प्रतिक्रिया दिखाई देती है. इसी तरह बोर्ड ने पाया कि यूज़र के कंटेंट को हटाने से ऑफ़लाइन नुकसान में कोई कमी नहीं आई.

इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कि Facebook ने इज़राइली सरकार की माँगों के कारण फ़िलिस्तीनी कंटेंट को सेंसर कर दिया है, बोर्ड ने Facebook से सवाल किया कि क्या कंपनी को अप्रैल-मई के बीच हुए संघर्ष से संबंधित कंटेंट को हटाने के लिए इज़राइल की ओर से आधिकारिक और अनाधिकारिक अनुरोध मिले थे. Facebook ने जवाब दिया कि उसे इस केस में यूज़र के कंटेंट के संबंध में किसी सरकारी अधिकारी की ओर से वैध कानूनी अनुरोध नहीं मिला था, लेकिन उसने बोर्ड द्वारा माँगी गई अन्य जानकारी देने से इनकार कर दिया.

इस केस को लेकर सबमिट किए गए पब्लिक कमेंट में ये आरोप शामिल थे कि Facebook ने फ़िलिस्तीनी यूज़र्स के कंटेंट और अरबी भाषा के कंटेंट को अनुपयुक्त तरीके से हटा दिया है या कम कर दिया है, ख़ास तौर पर इज़राइल में अरब-विरोधी या फ़िलिस्तीनी विरोधी हिंसा की धमकी देने वाली पोस्ट को मैनेज करने की तुलना में. साथ ही इनमें इज़राइली नागरिकों के विरुद्ध हिंसा भड़काने वाले कंटेंट को हटाने के कड़े नियम नहीं बनाने के लिए Facebook की आलोचना की गई है. बोर्ड ने इन महत्वपूर्ण मुद्दों का निष्पक्ष रिव्यू करने के साथ ही सरकारी अनुरोधों के संबंध में ज़्यादा पारदर्शिता रखने का सुझाव दिया है.

ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला

ओवरसाइट बोर्ड ने यह देखते हुए कंटेंट को रीस्टोर करने के Facebook के फ़ैसले को स्वीकार किया कि कंटेंट को हटाने का उसका मूल फ़ैसला उपयुक्त नहीं था.

पॉलिसी से जुड़े सुझाव देते हुए बोर्ड ने Facebook को कहा कि वह:

  • निष्पक्ष चर्चा, निंदा और समाचार रिपोर्टिंग के अपवादों की समझ बढ़ाने के लिए खतरनाक लोगों और संगठनों से जुड़ी अपनी पॉलिसी में शर्तें और व्याख्यात्मक उदाहरण जोड़े.
  • यह सुनिश्चित करे कि कम्युनिटी स्टैंडर्ड में होने वाले अपडेट का सभी उपलब्ध भाषाओं में जल्दी अनुवाद हो.
  • एक ऐसी निष्पक्ष संस्था को शामिल करे जो इज़राइली-फ़िलिस्तीनी संघर्ष के किसी भी पक्ष से संबद्ध न हो, ताकि यह निर्धारित करने के लिए विस्तृत जाँच की जा सके कि Facebook के ऑटोमेशन के उपयोग सहित क्या अरबी और हिब्रू भाषाओं में उसके कंटेंट मॉडरेशन को पूर्वाग्रह के बिना लागू किया गया है. इस जाँच में न केवल फ़िलिस्तीनी या फ़िलिस्तीनी समर्थन वाले कंटेंट को प्रबंधित करने के तरीके का बल्कि ऐसे कंटेंट का भी रिव्यू किया जाना चाहिए जो किन्हीं भी संभावित लक्ष्यों के विरुद्ध हिंसा को भड़काता हो, चाहे उनकी राष्ट्रीयता, जाति, धर्म या आस्था अथवा राजनीतिक राय कुछ भी हो. इस रिव्यू में इज़राइल और फ़िलिस्तीनी अधिकृत क्षेत्रों में और उनके बाहर स्थित Facebook यूज़र्स द्वारा पोस्ट किया गया कंटेंट अच्छी तरह से देखा जाना चाहिए. इसकी रिपोर्ट और उसके निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
  • इसकी एक पारदर्शी प्रक्रिया बनाएँ कि उस निष्पक्ष संस्था को कंटेंट को हटाने के सभी सरकारी अनुरोध कैसे मिलेंगे और वह उनके जवाब कैसे देगी तथा यह सुनिश्चित करें कि वे पारदर्शिता रिपोर्टिंग में शामिल हों. पारदर्शिता रिपोर्टिंग में यह अंतर समझ में आना चाहिए कि वे कौन-से सरकारी अनुरोध थे जिनके कारण कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन करने वाले कंटेंट को हटाया गया था और वे कौन-से सरकारी अनुरोध थे जिनके कारण स्थानीय कानून का उल्लंघन करने वाले कंटेंट को हटाया या जिओ-ब्लॉक किया गया था और इनके अलावा वे कौन-से सरकारी अनुरोध थे जिन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी.

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