ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के फ़ैसले को बदला: केस 2020-002-FB-UA

ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत एक पोस्ट को हटाने के उसके फ़ैसले को बदल दिया है. बोर्ड ने यह पाया कि इस पोस्ट को अपमानजनक माना जा सकता है, लेकिन इसमें नफ़रत फैलाने वाली भाषा जैसा कुछ नहीं है.

केस की जानकारी

29 अक्टूबर 2020 को म्यांमार के एक यूज़र ने बर्मी में किसी Facebook ग्रुप में पोस्ट की. इस पोस्ट में कुर्द जाति के एक सीरियाई बच्चे की व्यापक रूप से शेयर की गईं दो फ़ोटो शामिल थीं, जो सितंबर 2015 में यूरोप पहुँचने की कोशिश में डूब गया था.

पोस्ट में शामिल टेक्स्ट में कहा गया कि मुस्लिमों (या मुस्लिम पुरुषों) को मनोवैज्ञानिक तौर पर या उनकी मानसिकता में कोई समस्या है. इसने फ़्रांस में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून चित्रण के जवाब में हत्याओं की तुलना में, आमतौर पर चीन में उइगर मुस्लिमों के साथ व्यवहार को लेकर मुस्लिमों द्वारा प्रतिक्रिया की कमी पर सवाल उठाया. इस पोस्ट से यह निष्कर्ष निकलता है कि फ़्रांस में हुईं हाल ही की घटनाओं के कारण यूज़र की दर्शाए गए बच्चे के प्रति सहानुभूतियाँ कम हो जाती हैं और ऐसे संकेत हैं कि बच्चा आगे चलकर एक चरमपंथी मुस्लिम बनता.

Facebook ने नफ़रत फैलाने वाली भाषा के अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत यह कंटेंट हटा दिया.

मुख्य निष्कर्ष

Facebook ने यह कंटेंट हटा दिया क्योंकि इसमें वाक्यांश था कि “मुस्लिमों को मनोवैज्ञानिक तौर पर कोई समस्या [है].” चूँकि नफ़रत फैलाने वाली भाषा के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के अनुसार किसी समूह के धर्म के आधार पर उसकी मानसिक कमियों के बारे में हीनता के व्यापक बयानों पर रोक लगाई जाती है, इसलिए कंपनी ने पोस्ट हटा दी.

बोर्ड ने माना कि पोस्ट के पहले हिस्से को, निहितार्थ समझे बिना, देखकर लग सकता है कि इसमें मुस्लिमों (या मुस्लिम पुरुषों) के बारे में व्यापक तौर पर अपमानजनक बात कही गई है, लेकिन संदर्भ को ध्यान में रखते हुए पोस्ट को पूर्ण रूप में पढ़ा जाना चाहिए.

Facebook ने टेक्स्ट का यह अनुवाद किया: "वाकई में मुस्लिमों को मनोवैज्ञानिक तौर पर कुछ समस्या [है]," लेकिन बोर्ड के अनुवादकों ने यह बताया: "[उन] मुस्लिम पुरुषों की मानसिकता थोड़ी गलत है." उन्होंने यह भी कहा कि उपयोग किए गए शब्द अपमानजनक या हिंसक नहीं थे.

बोर्ड के संदर्भ विशेषज्ञों ने उल्लेख किया कि म्यांमार में मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने वाली भाषा आम है और कभी-कभी गंभीर होती है, लेकिन मुस्लिमों को मानसिक रूप से अस्वस्थ या मनोवैज्ञानिक तौर पर अस्थिर बताने वाले बयान इस बातचीत में मुख्य हिस्सा नहीं हैं.

पूरे संदर्भ में बोर्ड का मानना है कि टेक्स्ट को फ़्रांस और चीन की घटनाओं को लेकर मुस्लिमों की प्रतिक्रियाओं के बीच स्पष्ट भिन्नता पर एक टिप्पणी के रूप में समझा जाए. विचारों की वह अभिव्यक्ति Facebook के कम्युनिटी स्टैंडर्ड के तहत सुरक्षित है और इसमें नफ़रत फैलाने वाली भाषा जैसा कुछ नहीं है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों को ध्यान में रखते हुए बोर्ड ने पाया कि पोस्ट को मुस्लिमों के प्रति अपमानजनक या आपत्तिजनक माना जा सकता है, लेकिन यह घृणा या जान-बूझकर निकट भविष्य में किसी भी तरह के नुकसान का समर्थन नहीं करती. इस तरह, बोर्ड दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए इसे हटाया जाना आवश्यक नहीं मानता है.

बोर्ड ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि मुस्लिम विरोधी नफ़रत फैलाने वाली भाषा के प्रति Facebook की संवेदनशीलता को समझा जा सकता है, ख़ास तौर पर म्यांमार में मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा और भेदभाव के इतिहास और नवंबर 2020 में देश के आम चुनाव से पहले बढ़े जोख़िम को देखते हुए. हालाँकि, इस विशेष पोस्ट के लिए बोर्ड का निष्कर्ष यह है कि Facebook का कंटेंट हटा देने का फ़ैसला गलत था.

ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला

ओवरसाइट बोर्ड ने Facebook के कंटेंट हटाने के फ़ैसले को बदल दिया और पोस्ट को रीस्टोर करने के लिए कहा गया.

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अपडेट 17:00 GMT, 28.01.21: म्यांमार के फ़ैसले के प्रकाशन के बाद, बोर्ड के निष्कर्षों को और सटीक रूप से समझने के लिए बोर्ड द्वारा शारीरिक चोट और मानसिक अखंडता के संबंध में सेक्शन 8 में दो पैराग्राफ़ अपडेट किए गए थे.

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