सही ठहराया
डेमोग्राफ़िक बदलावों पर राजनेता के कमेंट
12 मार्च 2024
ओवरसाइट बोर्ड ने एक वीडियो क्लिप को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा जिसमें फ़्रेंच राजनेता एरिक ज़ेमौर ने यूरोप और अफ़्रीका के डेमोग्राफ़िक बदलावों की चर्चा की है.
सारांश
ओवरसाइट बोर्ड ने एक वीडियो क्लिप को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा जिसमें फ़्रेंच राजनेता एरिक ज़ेमौर ने यूरोप और अफ़्रीका के डेमोग्राफ़िक बदलावों की चर्चा की है. वह कंटेंट नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करता क्योंकि उसमें नस्ल, जातीयता या राष्ट्रीय मूल जैसी सुरक्षित विशिष्टताओं के आधार पर लोगों पर कोई सीधा हमला नहीं किया गया है. बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों ने पाया कि कंटेंट को बनाए रखना, Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के अनुरूप है. हालाँकि, बोर्ड ने सुझाव दिया कि Meta को सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह आव्रजन से संबंधित चर्चाओं को नुकसानदेह षडयंत्रकारी थ्योरीज़ सहित उन नुकसानदेह बयानों से किस तरह अलग करता है जो लोगों की प्रवासी स्थिति के आधार पर उन्हें टार्गेट करते हैं.
केस की जानकारी
जुलाई 2023 में फ़्रेंच राजनेता एरिक ज़ेमौर के आधिकारिक Facebook पर एक यूज़र, जो पेज का एडमिनिस्ट्रेटर भी है, ने एक वीडियो क्लिप पोस्ट की जिसमें ज़ेमौर, यूरोप और अफ़्रीका के डेमोग्राफ़िक बदलावों की चर्चा कर रहे हैं. यह क्लिप, राजनेता के एक लंबे वीडियो इंटरव्यू का एक भाग है. इस वीडियो में ज़ेमौर कहते हैं: “20वीं सदी की शुरुआत से अब तक, यूरोप में जनसंख्या का विस्फोट हुआ है.” वे आगे कहते हैं कि यूरोपियन यूनियन की जनसंख्या अभी भी लगभग 400 मिलियन के आसपास बनी हुई है, लेकिन अफ़्रीका की जनसंख्या बढ़कर 1.5 बिलियन तक पहुँच गई है, “इसलिए ताकत का संतुलन खिसक गया है.” फ़्रेंच भाषा में पोस्ट के कैप्शन में कहा गया है कि 1900 के दशक में “जब एक अफ़्रीकी व्यक्ति के मुकाबले चार यूरोपियन लोग थे, तब [यूरोप] ने अफ़्रीका को उपनिवेश बनाया” और अब “एक यूरोपियन व्यक्ति के मुकाबले चार अफ़्रीकी लोग है और अफ़्रीका, यूरोप को उपनिवेश बना रहा है.” ज़ेमौर के Facebook पेज के लगभग 300,000 फ़ॉलोअर हैं, जबकि इस पोस्ट को जनवरी 2024 तक लगभग 40,000 बार देखा गया था.
नस्लीय घृणा फैलाने और मुसलमानों, अफ़्रीकी और अश्वेत लोगों के बारे में अपमानजनक नस्लीय टिप्पणियाँ करने के कारण फ़्रांस में ज़ेमौर पर कई मुकदमे चल रहे हैं और एक से ज़्यादा मामलों में उन्हें दोषी पाया गया है. उन्होंने 2022 में राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था लेकिन वे पहले राउंड से आगे नहीं जा पाए. उनके चुनावी कैंपेन के केंद्र में ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी रही है जिसमें यह दावा किया गया है कि श्वेत यूरोपियन लोगों को आव्रजन और अल्पसंख्यक समुदायों की जनसंख्या बढ़ाकर जान-बूझकर नस्लीय और सांस्कृतिक रूप से प्रतिस्थापित किया जा रहा है. भाषाई विशेषज्ञों ने नोट किया कि यह थ्योरी और उससे जुड़े शब्द “अप्रवासियों, अश्वेत यूरोपियन लोगों के खिलाफ़ नस्लवाद, नफ़रत और हिंसा भड़काते हैं और खास तौर पर मुसलमानों को टार्गेट करते हैं.” इस पोस्ट के वीडियो में उस थ्योरी का विशेष रूप से कोई उल्लेख नहीं है.
दो यूज़र्स ने Meta की नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी पॉलिसी का उल्लंघन करने के कारण कंटेंट की रिपोर्ट की, लेकिन 48 घंटों की अवधि में रिपोर्ट्स को रिव्यू के लिए प्राथमिकता नहीं दी गई, इसलिए उन्हें अपने आप बंद कर दिया गया. अनुमानित उल्लंघन की गंभीरता, कंटेंट का वायरल होना (देखे जाने की संख्या) और उल्लंघन की संभावना के आधार पर Meta के ऑटोमेटेड सिस्टम, रिपोर्ट्स को प्राथमिकता देते हैं. उनमें से एक यूज़र ने फिर Meta से अपील की, जिसके बाद कंपनी के ह्यूमन रिव्यूअर्स ने रिव्यू किया और तय किया कि कंटेंट से Meta के नियमों का उल्लंघन नहीं होता. इसके बाद उस यूज़र ने बोर्ड को इस फ़ैसले के खिलाफ़ अपील की.
मुख्य निष्कर्ष
बोर्ड के बहुसंख्य सदस्य इस नतीजे पर पहुँचे कि कंटेंट से नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े Meta के कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं होता. वीडियो क्लिप में आव्रजन पर राय की सुरक्षित (हालाँकि विवादास्पद) अभिव्यक्ति का एक उदाहरण है और उसमें न तो हिंसा का आह्वान है और न ही उसमें कमज़ोर समूहों के लिए हीन दिखाने वाली या नफ़रत फैलाने वाली सीधी भाषा का उपयोग किया गया है. ज़ेमौर पर पहले नफ़रत फैलाने वाली भाषा के उपयोग के लिए मुकदमा चलाया जा चुका है और इस वीडियो की थीम, ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी जैसी ही है, फिर भी ये तथ्य किसी ऐसी पोस्ट को हटाने की पर्याप्त वजह नहीं है जो Meta के स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करती.
उल्लंघन करने के लिए पोस्ट में “सीधा हमला” होना ज़रूरी था, खास तौर पर “सुरक्षित विशिष्टता” वाले समूह के “बहिष्कार या अलगाव” का आह्वान. चूँकि ज़ेमौर की टिप्पणियों में कोई सीधा हमला नहीं है और वीडियो में न तो किसी समूह का यूरोप से बहिष्कार करने का सीधा आह्वान है और न ही ऐसा कोई कथन है जो नुकसानदेह रूढ़िवाद, गाली या किसी अन्य सीधे हमले के समान हो, इसलिए उससे नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े Meta के नियमों का उल्लंघन नहीं होता. पॉलिसी बनाने के कारण में भी यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि Meta “आव्रजन पॉलिसी पर कमेंटरी और उसकी आलोचना” की परमिशन देता है, लेकिन कंपनी ने यह बात सार्वजनिक रूप से शेयर नहीं की है कि वह आव्रजन पॉलिसीज़ की चर्चा करते समय बहिष्कार के आह्वानों की परमिशन देती है.
हालाँकि बोर्ड ने इस बात को चिंताजनक पाया कि Meta, अफ़्रीकी लोगों को सुरक्षित विशिष्टता वाला समूह नहीं मानता जबकि Meta की पॉलिसीज़ और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, दोनों में राष्ट्रीय मूल, नस्ल और धर्म को सुरक्षा प्रदान की गई है. पूरे कंटेंट में अफ़्रीकी लोगों की बात की गई है और इस वीडियो में उसे अश्वेत अफ़्रीकी लोगों के लिए प्रॉक्सी के रूप में उपयोग किया गया है.
बोर्ड ने इस केस में खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़ी पॉलिसी की प्रासंगिकता पर भी विचार किया. हालाँकि, बोर्ड ने बहुसंख्य सदस्यों ने पाया कि पोस्ट से इस पॉलिसी का उल्लंघन नहीं होता क्योंकि हिंसा भड़काने के षडयंत्र वाले व्यापक नेटवर्क का भाग होने के संबंध में इसका रिव्यू करने के लिए पर्याप्त एलिमेंट मौजूद नहीं हैं. Meta इन नेटवर्क को ऐसे गैर-सरकारी लोगों के रूप में परिभाषित करता है जिनका मिशन स्टेटमेंट एक ही है, जो ऐसी आधारहीन थ्योरीज़ को बढ़ावा देते हैं जिनमें दावा किया जाता है कि सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं के पीछे ताकतवर लोगों का गुप्त षडयंत्र है और जो ऑफ़लाइन नुकसान के किसी पैटर्न से सीधे लिंक हैं.
बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों ने पाया कि षडयंत्र वाली नुकसानदेह थ्योरीज़ का प्रसार करने वाले कंटेंट के प्रति Meta का रवैया उन पॉलिसीज़ के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है जिनका निर्माण उसने अल्पसंख्यकों की ऑनलाइन और ऑफ़लाइन सुरक्षा को प्रभावित करने वाले बहिष्कार के माहौल को रोकने के लिए किया है. इन पॉलिसीज़ के तहत, संकटग्रस्त अल्पसंख्यक समूहों की सुरक्षा के लिए ऐसे कंटेंट को मॉडरेट किया जाता है जिसमें षडयंत्र वाले कुछ अन्य कथन होते हैं. बोर्ड के ये सदस्य मानते हैं कि आव्रजन जैसे मुद्दों की आलोचना की परमिशन दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा ठीक-ठीक इसलिए है क्योंकि इस विषय पर सबूत-आधारित चर्चा उतनी ही ज़रूरी है जितना कि ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी जैसी षडयंत्रकारी थ्योरीज़ का फैलना नुकसानदेह हो सकता है. कंटेंट के अलग-अलग हिस्सों से कोई समस्या नहीं है, लेकिन बड़े पैमाने पर और तेज़ गति से ऐसे कंटेंट को शेयर किए जाने के संयुक्त प्रभाव, सोशल मीडिया कंपनियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती उत्पन्न करते हैं. इसलिए, Meta को अपनी पॉलिसीज़ पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है ताकि उसकी सेवाओं का उन लोगों द्वारा दुरुपयोग न किया जाए जो ऑनलाइन और ऑफ़लाइन नुकसान पहुँचाने वाली षडयंत्रकारी थ्योरीज़ को बढ़ावा देते हैं.
Meta ने पॉलिसी लाइन के बारे में एक रिसर्च करवाई है जिससे नुकसानदेह षडयंत्रकारी थ्योरीज़ का समाधान हो सकता है, लेकिन कंपनी ने यह तय किया कि इससे अंततः बहुत ज़्यादा मात्रा में राजनैतिक बयानबाज़ी हट जाएगी. बोर्ड इस बात से चिंतित है कि Meta ने इस प्रक्रिया के बारे में बहुत कम जानकारी शेयर की है.
ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला
ओवरसाइट बोर्ड ने पोस्ट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा है.
बोर्ड ने Meta को सुझाव दिया है कि वह:
- नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड की अपनी भाषा में इस बात की ज़्यादा जानकारी दे कि किस तरह वह आव्रजन से जुड़ी चर्चाओं को लोगों की अप्रवासी स्थिति के आधार पर उन्हें टार्गेट करने वाले नुकसानदेह बयानों से अलग करता है. इसमें इस बारे में जानकारी देना भी शामिल है कि कंपनी किस तरह नुकसानदेह षडयंत्रकारी थ्योरीज़ का प्रसार करने वाले कंटेंट को हैंडल करती है, ताकि यूज़र्स यह समझ सकें कि इन थ्योरीज़ के संभावित ऑफ़लाइन नुकसानों का समाधान करते समय Meta किस तरह आव्रजन से जुड़े राजनैतिक बयानों की रक्षा करता है.
*केस के सारांश से केस का ओवरव्यू मिलता है और आगे के किसी फ़ैसले के लिए इसको आधार नहीं बनाया जा सकता है.
केस का पूरा फ़ैसला
1.फ़ैसले का सारांश
ओवरसाइट बोर्ड ने फ़्रेंच राजनेता एरिक ज़ेमौर के आधिकारिक Facebook पेज पर उस पोस्ट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा है जिसमें ज़ेमौर के इंटरव्यू का एक वीडियो है. इस वीडियो में वे यूरोप और अफ़्रीका के डेमोग्राफ़िक बदलावों की चर्चा कर रहे हैं. बोर्ड ने पाया कि कंटेंट से नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े Meta के कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं होता क्योंकि वह लोगों पर उनकी नस्ल, जातीयता और राष्ट्रीय मूल सहित सुरक्षित विशिष्टताओं के आधार पर सीधा हमला नहीं करता. बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों ने पाया कि कंटेंट को Facebook पर बनाए रखने का Meta का फ़ैसला, उसकी मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के अनुसार है. बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों ने पाया कि Meta की पॉलिसीज़, ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी जैसी नुकसानदेह और बहिष्कार करने वाली षडयंत्रकारी थ्योरीज़ द्वारा प्रस्तुत गंभीर खतरों का समाधान करने की Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. बोर्ड ने सुझाव दिया कि Meta सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट करे कि वह आव्रजन के बारे में बयानों की रक्षा करने की ज़रूरत को देखते हुए किस तरह नुकसानदेह षडयंत्रकारी थ्योरीज़ का प्रसार करने वाले कंटेंट को हैंडल करता है और साथ ही ऐसी नुकसानदेह षडयंत्रकारी थ्योरीज़ के संभावित ऑफ़लाइन नुकसानों का समाधान भी करता है.
2. केस की जानकारी और बैकग्राउंड
7 जुलाई, 2023 को, एक यूज़र ने फ़्रेंच राजनेता एरिक ज़ेमौर के आधिकारिक और वेरिफ़ाई किए गए Facebook पेज पर एक वीडियो पोस्ट किया. वीडियो में, जो फ़्रेंच भाषा में लिए गए इंटरव्यू की एक 50 सेकंड की क्लिप है, ज़ेमौर ने यूरोप और अफ़्रीका के डेमोग्राफ़िक बदलावों की चर्चा की है. जिस यूज़र ने वीडियो पोस्ट किया, वह पेज का एक एडमिनिस्ट्रेटर है और पेज के लगभग 300,000 फ़ॉलोअर हैं. ज़ेमौर, फ़्रांस के 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में एक उम्मीदवार थे और वे पहले राउंड में लगभग 7% वोटों से जीते थे, लेकिन वे इससे आगे नहीं बढ़ सके. यह चुनाव लड़ने से पहले, ज़ेमौर ले फ़िगारो और अन्य अखबारों में एक नियमित स्तंभकार थे. साथ ही वे टीवी के एक मुखर कमेंटेटर भी थे और इस्लाम, आव्रजन और महिलाओं के बारे में उकसाने वाली बातें कहने के लिए जाने जाते थे. जैसा कि नीचे विस्तार से बताया गया है, इन टिप्पणियों को लेकर उन पर कई कानूनी मुकदमे भी चल रहे हैं और उनमें से कुछ में उन्हें दोषी पाया गया है. Meta, वीडियो पोस्ट करने वाले व्यक्ति को सार्वजनिक हस्ती नहीं मानता, लेकिन कंपनी ज़ेमौर को एक सार्वजनिक हस्ती मानती है.
इस वीडियो में ज़ेमौर कहते हैं कि: “20वीं सदी की शुरुआत से अब तक, यूरोप में जनसंख्या का विस्फोट हुआ है.” वे कहते हैं कि यूरोपियन यूनियन की जनसंख्या अभी भी लगभग 400 मिलियन के आसपास बनी हुई है, लेकिन अफ़्रीका की जनसंख्या बढ़कर 1.5 बिलियन लोगों तक पहुँच गई है, “इसलिए ताकत का संतुलन खिसक गया है.” फ़्रेंच भाषा में दिए गए कैप्शन में वीडियो के दावों को दोहराया गया है कि 1900 के दशक में “जब एक अफ़्रीकी व्यक्ति के मुकाबले चार यूरोपियन लोग थे, तब [यूरोप] ने अफ़्रीका को उपनिवेश बनाया” और अब “एक यूरोपियन व्यक्ति के मुकाबले चार अफ़्रीकी लोग है और अफ़्रीका, यूरोप को उपनिवेश बना रहा है.” इन आँकड़ों की तुलना नीचे दिए गए संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों से की गई है. इसके अलावा, इन आँकड़ों के बारे में बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों की राय नीचे सेक्शन 8.2 में विस्तार से बताई गई है.
जब 28 नवंबर, 2023 को बोर्ड ने इस केस की घोषणा की थी, तब तक कंटेंट को लगभग 20,000 देखा गया था. जनवरी 2024 तक कंटेंट को लगभग 40,000 बार देखा जा चुका है और उस पर 1,000 से कम रिएक्शन आए हैं, जिनमें से ज़्यादातर “लाइक” और दूसरे नंबर पर “बहुत पसंद” और “हा हा” थे.
9 जुलाई, 2023 को, दो यूज़र्स ने अलग-अलग रिपोर्ट करते हुए कंटेंट को नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी Meta की पॉलिसी का उल्लंघन करने वाला बताया. कंपनी ने दोनों रिपोर्ट को अपने आप बंद कर दिया क्योंकि उन्हें 48 घंटों की अवधि में रिव्यू के लिए प्राथमिकता नहीं दी गई थी. Meta ने बताया कि संभावित उल्लंघन की गंभीरता, कंटेंट के वायरल होने (कंटेंट को देखे जाने की संख्या) और इस बात की आशंका कि कंटेंट से कंपनी की पॉलिसीज़ का उल्लंघन होगा, जैसे कारणों के आधार पर रिपोर्ट को डायनेमिक रूप से प्राथमिकता दी जाती है. कंटेंट को हटाया नहीं गया और वह प्लेटफ़ॉर्म पर बना रहा.
11 जुलाई, 2023 को कंटेंट की रिपोर्ट करने वाले पहले यूज़र ने Meta के फ़ैसले के खिलाफ़ अपील की. अपील का आकलन एक ह्यूमन रिव्यूअर द्वारा किया गया और उसने कंटेंट को बनाए रखने के Meta के मूल फ़ैसले को कायम रखा. फिर रिपोर्ट करने वाले यूज़र ने ओवरसाइट बोर्ड के सामने अपील पेश की.
कंटेंट को पोस्ट किए जाने के दस दिन पहले, मोरक्कन और अल्जीरियाई मूल के एक 17 वर्षीय युवक नाहेल मेरज़ौक की जानलेवा गोलीबारी में मौत के कारण फ़्रांस में बड़े पैमाने पर दंगे भड़के थे और विरोध प्रदर्शन हुए थे. मेरज़ौक की हत्या पेरिस के एक उपनगर में 27 जून, 2023 को दो पुलिसकर्मियों ने पॉइंट-ब्लैंक रेंज से गोली मारकर कर दी थी. इस कंटेंट को पोस्ट किए जाने के समय विरोध प्रदर्शन जारी थे और उनका निशाना फ़्रांस में पुलिस की हिंसा और कथित सुनियोजित नस्लीय भेदभाव था. ये विरोध प्रदर्शन, पुलिस की हिंसा के खिलाफ़ किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों की लंबी सीरीज़ में सबसे नए थे. फ़्रांस में पुलिस की हिंसा के बारे में ये आरोप लगाए जाते रहे हैं कि उनमें अक्सर अफ़्रीकी मूल के अप्रवासियों और अन्य उपेक्षित समुदायों के लोगों को निशाना बनाया जाता है.
नस्लवाद और असहिष्णुता के खिलाफ़ यूरोपियन कमीशन (ECRI) के अनुसार, फ़्रांस में नस्लवाद के मुख्य शिकार अप्रवासी लोग हैं, खास तौर पर वे लोग जो अफ़्रीकी मूल के हैं या उनके वंशज हैं. 2022 में, नस्लीय भेदभाव उन्मूलन कमिटी (CERD) ने फ़ांस से कहा कि वह नस्लीय नफ़रत फैलाने वाली भाषा को प्रभावी तरीके से रोकने और उससे निपटने के अपने प्रयासों को दोगुना करे और कहा कि “देश की कोशिशों के बावजूद… कमिटी इस बात को लेकर चिंतित है कि नस्लवादी और भेदभावपूर्ण बातचीत कितनी स्थायी और व्यापक है.” वह “कुछ खास नस्लीय अल्पसंख्यकों के बारे में कुछ राजनेताओं की नस्लवादी टिप्पणियों से भी चिंतित है, खास तौर पर रोमा, यात्रियों, अफ़्रीकी लोगों, अफ़्रीकी लोगों के वंशजों, अरब मूल के लोगों और गैर-नागरिकों के बारे में,” (CERD/C/FRA/CO/22-23, पैरा. 11).
संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक मामलों के विभाग की 1999 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1900 में अफ़्रीकी लोगों की अनुमानित जनसंख्या 133 मिलियन थी. 2022 के संयुक्त राष्ट्र के डेटा के अनुमान के अनुसार 2021 में अफ़्रीका की जनसंख्या लगभग 1.4 बिलियन थी. इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक, अफ़्रीका की अनुमानित जनसंख्या 2.5 बिलियन के आसपास पहुँच जाएगी. 1999 की उसी रिपोर्ट के अनुसार, 1900 में यूरोप की जनसंख्या लगभग 408 मिलियन थी. संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग के अनुमान के अनुसार 2021 में यूरोप की जनसंख्या लगभग 745 मिलियन थी और 2050 तक वह घटकर लगभग 716 मिलियन रह जाएगी.
फ़्रांस में, दुनिया के अन्य भागों की तरह, अन्य देशों से आए अप्रवासियों की बड़ी संख्या राजनैतिक बहस का एक मुख्य विषय बन गई है. सितंबर 2023 तक, लगभग 700,000 शरणार्थी और शरण चाहने वाले लोग फ़्रांस में मौजूद थे, जो फ़्रांस को यूरोपियन यूनियन का तीसरा सबसे बड़ा होस्ट देश बनाते हैं. बोर्ड द्वारा इस केस का रिव्यू किए जाते समय, फ़्रांस में आव्रजन को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और तीखी सार्वजनिक चर्चाएँ जारी थीं. इसी समय संसद ने एक नया आव्रजन कानून पारित किया जो अन्य बातों के अलावा आव्रजन का कोटा तय करता है और पारिवारिक पुनर्मिलन और सामाजिक लाभों तक पहुँच से जुड़े नियमों को कठोर बनाता है. ज़ेमौर और उनकी पार्टी इन चर्चाओं में अत्यंत सक्रिय रही है और आव्रजन से जुड़े प्रतिबंधों का समर्थन करती रही है..
ज़ेमौर पर कई कानूनी मुकदमे चल रहे हैं और उन्हें फ़्रांस की अदालतों द्वारा हाल ही के वर्षों में कई बार नस्लीय नफ़रत भड़काने और अपमानजनक नस्लीय टिप्पणियाँ करने के लिए दोषी ठहराया है. उन्होंने इस तरह की टिप्पणियाँ मुसलमानों, अफ़्रीकी लोगों, अश्वेत लोगों और LGBTQIA+ लोगों से जुड़े अपने बयानों में की थीं. ज़ेमौर को 2011 में टेलीविज़न पर की गई अपनी टिप्पणियों के लिए नस्लीय नफ़रत भड़काने का दोषी ठहराया गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि “ज़्यादातर डीलर अश्वेत और अरब हैं. यह एक तथ्य है.” एक ताज़ा मामले में, एक अदालत ने 2020 में नस्लीय नफ़रत भड़काने का दोषी पाया और उन पर यह कहने के लिए 10,000 यूरो का अर्थदंड लगाया कि बाल अप्रवासी “चोर, हत्यारे और बलात्कारी हैं. वे यही सब करते हैं. हमें उन्हें वापस भेज देना चाहिए.” एक अन्य मामले में उनसे अपील करने का अधिकार छीन लिया गया जिसमें सुधारात्मक अदालत ने उन्हें फ़्रेंच मुसलमान समुदाय के खिलाफ़ भेदभाव और धार्मिक नफ़रत भड़काने का दोषी ठहराया था और उन पर अर्थदंड लगाया था. उन्हें 2016 में एक टेलीविज़न शो पर दिए गए अपने उन बयानों के आधार पर दोषी ठहराया गया जिनमें उन्होंने कहा था कि मुसलमानों को “इस्लाम और फ़्रांस में से कोई एक चुनने के लिए कहा जाना चाहिए” और यह कि “हम तीस वर्षों से हमला, उपनिवेशवाद झेल रहे हैं (…) यह एक ऐसे क्षेत्र के इस्लामीकरण के खिलाफ़ लड़ाई है जो सामान्य तौर पर एक गैर-इस्लामी इलाका है.” दिसंबर 2022 में, मानवाधिकारों की यूरोपियन कोर्ट ने कहा कि दोष सिद्ध होने से अभिव्यक्ति की आज़ादी का ज़ेमौर के अधिकार का हनन नहीं हुआ.
इस केस के कंटेंट में ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इसकी बनावट ज़ेमौर की राजनैतिक विचारधारा से प्रभावित है और जो राष्ट्रपति पद के उनके कैंपेन में साफ़ दिखाई देती है. कैंपेन के दौरान उन्हें वादा किया था कि अगर वे जीते, तो वे “पुनः आव्रजन का मंत्रालय” बनाएँगे. उन्होंने यह भी कहा था कि वे पाँच वर्षों में “एक मिलियन विदेशियों को वापस उनके देश भेज देंगे.” बोर्ड द्वारा करवाई गई एक स्वतंत्र रिसर्च, जो षडयंत्रकारी थ्योरीज़ और फ़्रेंच राजनीति, सोशल मीडिया ट्रेंड और भाषा के विशेषज्ञों द्वारा की गई थी, के अनुसार ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के समर्थक यह तर्क देते हैं कि श्वेत यूरोपियन लोगों को आव्रजन और अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की संख्या में वृद्धि करके जान-बूझकर नस्लीय और सांस्कृतिक रूप से प्रतिस्थापित किया जा रहा है. इसमें कहा गया है कि गैर-यूरोपियन देशों (ज़्यादातर अफ़्रीका और एशिया) से अश्वेत लोगों (मुख्य रूप से ज़्यादातर मुसलमान) का यूरोप में सामयिक आव्रजन, डेमोग्राफ़िक युद्ध का एक रूप है. बोर्ड के विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आव्रजन और आव्रजन में वृद्धि के आँकड़े गलत नहीं हैं. बल्कि, गलत इस बात पर अड़े रहना है कि श्वेत लोगों को प्रतिस्थापित करने या उनकी संख्या को कम करने के लिए अश्वेत लोगों को यूरोप में लाने का षडयंत्र किया जा रहा है. यह बात ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी को षडयंत्रपूर्ण बनाती है. बोर्ड ने जिन भाषाई विशेषज्ञों से परामर्श किया, उन्होंने बताया कि ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी और उससे जुड़े शब्द “अप्रवासियों, अश्वेत यूरोपियन लोगों के खिलाफ़ नस्लवाद, नफ़रत और हिंसा भड़काते हैं और खास तौर पर मुसलमानों को टार्गेट करते हैं.” यूरोपियन यूनियन के कट्टरता जागरूकता नेटवर्क की एक रिपोर्ट में नोट किया गया है कि ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी को आगे बढ़ाने वाले लोगों द्वारा फैलाई जा रही यहूदी विरोध, मुसलमान विरोधी और समग्र रूप से आव्रजन विरोधी भावना से हाल ही के वर्षों में यूरोप में कई हाई-प्रोफ़ाइल सोलो अटैकर्स के लिए टार्गेट का चयन आसान बन रहा है. बोर्ड द्वारा करवाई गई रिसर्च से यह भी पता चला है कि थ्योरी के कारण हाल के वर्षों में पूरी दुनिया में हिंसा की बेशुमार घटनाएँ हुई हैं, जिनमें न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में सामूहिक गोलीबारी शामिल है जिसमें 51 मुसलमानों की मौत हो गई थी.
बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों ने इस तथ्य पर भी एक महत्वपूर्ण संदर्भ के रूप में विचार किया कि पिछले एक साल में फ़्रांस में अत्यंत रूढ़िवादी विरोध प्रदर्शनों की घटनाएँ बढ़ी हैं. 18 नवंबर को फ़्रांस के ग्रामीण समुदाय क्रेपोल में एक जश्न के दौरान एक टीनएजर बच्चे की गोली मारकर हत्या के बाद, कार्यकर्ताओं और अत्यंत रूढ़िवादी पार्टियों ने हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू किए जिनमें प्रदर्शनकारियों का पुलिस से आमना-सामना हुआ. उन्होंने आरोप लगाया कि अप्रवासी और अल्पसंख्यक लोग इसके ज़िम्मेदार थे, इस तथ्य के बावजूद कि इस गोलीबारी के संबंध में पकड़े गए नौ लोगों में से आठ फ़्रेंच और एक इटैलियन था. आंतरिक मामलों के मंत्री गेराल्ड डार्मेनिन ने कहा कि “नागरिक सेना के सदस्य अरब लोगों, अन्य रंग की त्वचा वाले लोगों पर हमले करने के बहाने तलाशते हैं जो थर्ड रेह के लिए उनकी सनक दिखाता है.” फ़्रेंच ग्रीन पार्टी के राजनेता सैंडरीन रूसो ने इन विरोध प्रदर्शनों की तुलनारेटोनेड से की, जो नस्लीय अल्पसंख्यकों या किसी सामाजिक समूह के खिलाफ़ की गई शारीरिक हिंसा को कहा जाता है, मुख्य रूप से उत्तरी अफ़्रीकी मूल के लोगों के खिलाफ़. सबसे उल्लेखनीय रेटोनेड, जिसके कारण यह शब्द जाना जाने लगा, 17 अक्टूबर, 1961 को हुआ था जिसमें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे अल्जीरियाई लोगों पर पुलिस की हिंसा में 200 अल्जीरियाई लोग मारे गए थे. तब से फ़्रांस में अलग-अलग संदर्भों में यह शब्द सामने आता रहा है. उदाहरण के लिए, दिसंबर 2022 में फ़्रांस-मोरक्को मैच के बाद सड़कों पर हुई हिंसा की निंदा करने में सोशल मीडिया के यूज़र्स के साथ फ़्रांस के राजनेता भी शामिल हो गए और उन्होंने इसकी तुलनारेटोनेड से की.
3. ओवरसाइट बोर्ड की अथॉरिटी और स्कोप
बोर्ड को उस यूज़र के अपील करने के बाद Meta के फ़ैसले का रिव्यू करने का अधिकार है, जिसने पहले ऐसे कंटेंट की रिपोर्ट की थी जिसे छोड़ दिया गया था (चार्टर अनुच्छेद 2, सेक्शन 1; उपनियम अनुच्छेद 3, सेक्शन 1).
बोर्ड, Meta के फ़ैसले को कायम रख सकता है या उसे बदल सकता है (चार्टर अनुच्छेद 3, सेक्शन 5) और उसका फ़ैसला कंपनी पर बाध्यकारी होता है (चार्टर अनुच्छेद 4). Meta को मिलते-जुलते संदर्भ वाले समान कंटेंट पर भी बोर्ड के फ़ैसले को लागू करने की संभावना का आकलन करना चाहिए (चार्टर अनुच्छेद 4). बोर्ड के फ़ैसलों में गैर-बाध्यकारी सलाह शामिल हो सकती हैं, जिन पर Meta को जवाब देना ज़रूरी है (चार्टर अनुच्छेद 3, सेक्शन 4; अनुच्छेद 4). जहाँ Meta, सुझावों पर एक्शन लेने की प्रतिबद्धता व्यक्त करता है, वहाँ बोर्ड उनके क्रियान्वयन की निगरानी करता है.
4.अथॉरिटी और मार्गदर्शन के सोर्स
इस केस में बोर्ड ने इन स्टैंडर्ड और पुराने फ़ैसलों को ध्यान में रखते हुए विश्लेषण किया:
I.ओवरसाइट बोर्ड के फ़ैसले
- यहूदी नरसंहार को नकारना (होलोकॉस्ट डिनायल)
- भारत के ओडिशा राज्य में सांप्रदायिक दंगे
- क्निन कार्टून
- अल जज़ीरा की शेयर की गई पोस्ट
- पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप का सस्पेंशन
- ज़्वार्टे पिएट का चित्रण
II.Meta की कंटेंट पॉलिसीज़
नफ़रत फैलाने वाली भाषा
नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के लिए पॉलिसी बनाने के कारण में कहा गया है कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा, जिसे सुरक्षित विशिष्टताओं के आधार पर लोगों पर सीधे हमले के रूप में परिभाषित किया जाता है, का प्लेटफ़ॉर्म पर उपयोग करने की अनुमति नहीं है, "क्योंकि इससे डराने-धमकाने और बहिष्कार का माहौल बनता है और कुछ मामलों में इससे सचमुच में हिंसा भड़क सकती है." पॉलिसी में अन्य विशिष्टताओं के अलावा नस्ल, जातीयता, राष्ट्रीय मूल और धार्मिक संबद्धता को सुरक्षित विशिष्टता माना गया है. पॉलिसी में बताया गया है कि “गंभीरता के आधार पर हमलों को दो टियर में बाँटा गया है” जिनमें से टियर 1 को सबसे गंभीर माना गया है. नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के पॉलिसी बनाने के कारण में भी यह बताया गया है कि पॉलिसी में “शरणार्थियों, अप्रवासियों और शरण चाहने वाले लोगों को सबसे गंभीर हमलों से सुरक्षा प्रदान की गई है” लेकिन Meta “आव्रजन पॉलिसीज़ पर कमेंटरी और उनकी आलोचना” की परमिशन देता है. कंटेंट मॉडरेटर्स के लिए Meta के आंतरिक मार्गदर्शन में इस बारे में बताते हुए कहा गया है कि वह प्रवासियों, अप्रवासियों, शरणार्थियों और शरण चाहने वाले लोगों को लगभग सुरक्षित मानता है. इसका मतलब है कि Meta, नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी पॉलिसी के तहत टियर 1 के हमलों से उनकी सुरक्षा करता है लेकिन टियर 2 के हमलों से नहीं.
यह पॉलिसी, जिसमें पहले हमलों से जुड़े तीन टियर थे लेकिन अब उनमें से सिर्फ़ दो हैं, अन्य तरह के हमलों के अलावा अभी टियर 2 के हमले, जो “कॉल ऑफ़ एक्शन, इरादों के कथन, महत्वाकांक्षी या सशर्त कथन या इस रूप में परिभाषित बातों के समर्थन के रूप में बहिष्कार या अलगाव करता है: [...] प्रत्यक्ष बहिष्कार, जिसका मतलब है कि कुछ खास समूहों का बहिष्कार करना या यह कहना कि उन्हें परमिशन नहीं है” को प्रतिबंधित करती है. Meta ने इस पॉइंट पर कंटेंट रिव्यूअर्स को दिए जाने वाले अपने आंतरिक मार्गदर्शन के बारे में ज़्यादा जानकारी प्रकाशित करने की बोर्ड की रिक्वेस्ट को अस्वीकार कर दिया.
2017 की एक न्यूज़रूम पोस्ट जिसका शीर्षक था “कठिन सवाल: ऑनलाइन ग्लोबल कम्युनिटी में किसे यह तय करना चाहिए कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा कौन-सी है?” में, जिसे “नफ़रत फैलाने वाली भाषा को लेकर हमारे नज़रिए के बारे में और जानें” टेक्स्ट के साथ नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के पॉलिसी बनाने के कारण में सबसे नीचे लिंक किया गया है, Meta ने यह पाया है कि आव्रजन पर पॉलिसी से जुड़ी चर्चाएँ अक्सर “नफ़रत फैलाने वाली भाषा पर चर्चाएँ बन जाती हैं, क्योंकि दोनों तरफ के लोग भड़काऊ भाषा का उपयोग करते हैं.” कंपनी ने कहा कि पूरी दुनिया में आव्रजन से जुड़ी चर्चाओं के बारे में Facebook पर पोस्ट का रिव्यू करने के बाद, उसने फ़ैसला किया कि “वह अप्रवासियों के खिलाफ़ हिंसा के आह्वान या उन्हें नीचा दिखाने के रेफ़रेंस, जैसे कि पशुओं, मल या कचरे से उनकी तुलना, को हटाने के बारे में नई गाइडलाइन का निर्माण करेगी.” हालाँकि कंपनी ने “खुद आव्रजन पर अपने विचार व्यक्त करने की लोगों की योग्यता” में कोई बदलाव नहीं किया क्योंकि वह “यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है कि Facebook पर विधिसम्मत चर्चाएँ की जा सकें.”
खतरनाक संगठन और लोग
खतरनाक लोग और संगठन से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड के पॉलिसी बनाने के कारण में बताया गया है कि Meta “ऐसे किसी भी संगठन या व्यक्ति को Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर मौजूद रहने की परमिशन नहीं देता है जो कोई हिंसक मिशन चलाता है या हिंसा में शामिल होता है.” इसमें यह भी बताया गया है कि Meta इन एंटिटी का आकलन उनके ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, दोनों व्यवहारों के आधार पर करता है और सबसे महत्वपूर्ण रूप से, हिंसा से उनके संबंधों को देखा जाता है.”
खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड में यह बताया गया है कि Meta, हिंसा भड़काने वाले षडयंत्रकारी नेटवर्क की मौजूदगी को प्रतिबंधित करता है. इन नेटवर्क को फ़िलहाल ऐसे राष्ट्री विरोधी तत्वों के रूप में परिभाषित किया गया है: (i) “जिनके नाम, मिशन, कथन, प्रतीक या शेयर्ड लेक्सीकॉन से उनके इस काम का पता चलता है”; (ii) “जो ऐसी आधारहीन थ्योरीज़ को बढ़ावा देते हैं जो ऐसे दावों के साथ महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं, घटनाओं और परिस्थितियों के पीछे के बुनियादी कारण बताने की कोशिश करती हैं कि उनके पीछे दो या उससे ज़्यादा कर्ताओं का गुप्त षडयंत्र है”; और (iii) “जो नेटवर्क द्वारा प्रमोट की जाने वाली आधारहीन थ्योरीज़ में बताए गए कथित नुकसानों की ओर ध्यान खींचने या उनका निवारण करने की चाह द्वारा प्रेरित अनुयायियों द्वारा किए जाने वाले जान-माल के ऑफ़लाइन नुकसान के किसी पैटर्न का स्पष्ट रूप से समर्थन करते हैं या उनसे लिंक रहे हैं.”
बोर्ड द्वारा कंटेंट पॉलिसी का विश्लेषण, Meta की अभिव्यक्ति की प्रतिबद्धता, जिसे कंपनी सर्वोपरि बताती है, और सुरक्षा और गरिमा की उसकी वैल्यू के आधार पर भी किया गया है.
III. Meta की मानवाधिकारों से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ
बिज़नेस और मानवाधिकारों के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ के मार्गदर्शक सिद्धांत (UNGP), जिन्हें 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार समिति ने स्वीकृति दी है, प्राइवेट बिज़नेस की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों का स्वैच्छिक ढाँचा तैयार करते हैं. 2021 में Meta ने मानवाधिकारों से जुड़ी अपनी कॉर्पोरेट पॉलिसी की घोषणा की, जिसमें उसने UNGP के अनुसार मानवाधिकारों का ध्यान रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. इस केस में बोर्ड ने Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों का विश्लेषण इन अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड को ध्यान में रखते हुए किया:
- अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार: आर्टिकल 19, नागरिक और राजनैतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र (ICCPR), आर्टिकल 20, पैरा. 2 ICCPR, सामान्य कमेंट सं. 34, मानवाधिकार समिति, 2011; विचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ का विशेष रैपर्टर (UNSR), रिपोर्ट: A/HRC/38/35 (2018) और A/74/486 (2019).
- समानता रखना और भेदभाव न करना: अनुच्छेद 2, पैरा. 1 और अनुच्छेद 26, ICCPR; अनुच्छेद 2, हर तरह के नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ( ICERD); UN साधारण सभा, रिज़ॉल्यूशन A/RES/73/195.
- जीवन का अधिकार: अनुच्छेद 6, ICCPR.
5. यूज़र सबमिशन
बोर्ड को अपनी अपील के भाग के रूप में, बोर्ड को उस यूज़र की ओर से सबमिशन मिला जिसने कंटेंट की रिपोर्ट की और उसने कंटेंट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले के खिलाफ़ अपील की. अपने सबमिशन में अपील करने वाले यूज़र ने कहा कि ज़ेमौर, जनसंख्या की अधिकता को उपनिवेशवाद और आव्रजन के शब्दों में ही समझा रहे हैं, जिसे यूज़र ने “फ़र्ज़ी खबर” बताया.
6. Meta के सबमिशन
बोर्ड द्वारा केस का चयन किए जाने के बाद, Meta ने विषय विशेषज्ञों केसाथ मिलकर नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी पॉलिसी के अनुसार पोस्ट का रिव्यू किया और पाया कि कंटेंट को बनाए रखने का उसका मूल फ़ैसला सही था. Meta ने यह अतिरिक्त रिव्यू करने वाले विशेषज्ञों के खास दायरे या जानकारी के क्षेत्र के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं दी. Meta ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी कंटेंट को उल्लंघन करने वाला मानने के लिए, पॉलिसी के अनुसार सुरक्षित विशिष्टता वाला समूह और सीधा हमला मौजूद होना चाहिए – और यह कि जनसंख्या के बदलावों और उपनिवेशवाद के दावों में ये एलिमेंट मौजूद नहीं थे. Meta ने बताया कि वह इस आरोप को अपने आप में एक हमला नहीं मानता कि कोई समूह किसी स्थान को “उपनिवेश” बना रहा है, जब तक कि उससे बहिष्कार का आह्वान न हो. साथ ही उसने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि “वह नागरिकों को अपने देशों के कानूनों और पॉलिसीज़ की चर्चा करने की सुविधा देना चाहता है बशर्ते ऐसी चर्चाओं से उन कमज़ोर समूहों पर हमले न होते हों जिनके बारे में वे कानून बनाए गए हैं.” अंत में, Meta ने बताया कि कंटेंट में किसी सुरक्षित विशिष्टता वाले समूह की पहचान नहीं होती क्योंकि ज़ेमौर ने “अफ़्रीका” की बात की है जो एक महाद्वीप है और उसमें कई देश आते हैं. साथ ही उसने कहा कि “नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी पॉलिसी में देशों या संस्थाओं पर हमले करने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है.”
Meta ने नुकसानदेह षडयंत्र थ्योरीज़ पर कंपनी की पॉलिसी निर्माण प्रक्रिया की गोपनीयता उजागर करने से इंकार कर दिया. इसके बजाय Meta ने कहा कि: “हमने षडयंत्र थ्योरीज़ की चर्चा करने वाले कंटेंट के लिए विशेष पॉलिसी विकल्पों पर विचार किया है जो अन्यथा हमारी मौजूदा पॉलिसीज़ का उल्लंघन नहीं करता. हालाँकि हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि अभी के लिए, उनमें से कोई भी विकल्प लागू करने से बड़ी मात्रा में राजनैतिक बयानबाज़ी के हटने का खतरा है.”
बोर्ड ने Meta से आठ लिखित सवाल पूछे. सवालों में ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के बारे में Meta का पॉलिसी निर्माण; नफ़रत फैलाने वाली भाषा और खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़ी पॉलिसी की विभिन्न बातों को उपयोग करने के तरीकों; Facebook पेज और पोस्ट करने वाले यूज़र के लिए उल्लंघन के इतिहास के बारे में बात की गई थी. Meta ने बोर्ड के छह सवालों के जवाब दिए और दो के जवाब संतोषजनक रूप से नहीं दिए. जब Meta ने ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के बारे में बोर्ड के पॉलिसी निर्माण से जुड़े सवालों के जवाब में पर्याप्त जानकारी नहीं दी, तब बोर्ड ने फ़ॉलो-अप सवाल पूछे. तब Meta ने अतिरिक्त जानकारी दी लेकिन फिर भी वह पर्याप्त रूप से विस्तृत नहीं थी.
7.पब्लिक कमेंट
ओवरसाइट बोर्ड को 15 पब्लिक कमेंट मिले. इनमें से सात कमेंट अमेरिका और कनाडा से, तीन यूरोप से, दो मध्य और दक्षिण एशिया से, एक मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका से, एक एशिया पैसिफ़िक और ओशेनिया से और एक सब-सहारन अफ़्रीका से सबमिट किया गया था. इसमें ऐसे पब्लिक कमेंट शामिल हैं जो या तो डुप्लिकेट थे या प्रकाशित करने की सहमति के साथ सबमिट किए गए थे, लेकिन प्रकाशन के लिए बोर्ड की शर्तें पूरी नहीं करते थे. पब्लिक कमेंट को प्रकाशन की सहमति के साथ या उसके बगैर और एट्रिब्यूट करने की सहमति के साथ या उसके बगैर (अर्थात अनाम रूप से) बोर्ड को सबमिट किया जा सकता है.
सबमिशन में मुख्य रूप से दो विषयों पर बात की गई थी. पहला, कई कमेंट में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि इस केस में रिव्यू के दौरान कंटेंट को हटाना सेंसरशिप के समान होगा और इससे “उन नागरिकों का गुस्सा और बढ़ सकता है जो समझते हैं कि उनकी आवाज़ नहीं सुनी जाएगी,” (PC-22009). दूसरा, दो संगठनों द्वारा सबमिट किए गए कमेंट में इस तरह के कंटेंट और, खास तौर पर, ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के बुरे ऑफ़लाइन प्रभावों पर ज़ोर दिया गया. इन दोनों कमेंट में यह तर्क दिया गया कि क्राइस्टचर्च नरसंहार और थ्योरी के बीच एक लिंक है (PC-22013, डिजिटल राइट्स फ़ाउंडेशन; PC-22014, नफ़रत और अतिवाद के खिलाफ़ ग्लोबल प्रोजेक्ट).
इस केस को लेकर लोगों की ओर से सबमिट किए गए कमेंट देखने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें.
8.ओवरसाइट बोर्ड का विश्लेषण
बोर्ड ने यह तय करने के लिए Meta की कंटेंट पॉलिसी, मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों और वैल्यू का विश्लेषण किया कि क्या इस केस के कंटेंट को हटा दिया जाना चाहिए. बोर्ड ने यह भी आकलन किया कि कंटेंट गवर्नेंस को लेकर Meta के व्यापक दृष्टिकोण पर इस केस का क्या असर पड़ेगा.
बोर्ड ने इस केस का चयन इसलिए किया ताकि अप्रवासियों के खिलाफ़ पूरी दुनिया में बढ़ रही बयानबाज़ी और आव्रजन पॉलिसीज़ के बारे में तीखी सार्वजनिक चर्चाओं के संदर्भ में अप्रवासियों को टार्गेट करने वाले कंटेंट का रिव्यू करने के Meta के तरीकों का रिव्यू करने का अवसर मिले; खास तौर पर शुरुआत में नुकसानदेह कंटेंट को आव्रजन पॉलिसीज़ की चर्चा करने वाले राजनैतिक बयानों से अलग करने में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए.
8.1 Meta की कंटेंट पॉलिसी का अनुपालन
बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कंटेंट से Meta की पॉलिसीज़ का उल्लंघन नहीं होता. इसलिए, कंटेंट को Facebook पर बनाए रखने का Meta का फ़ैसला सही था. हालाँकि बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्य मानते हैं कि Meta की पॉलिसीज़ में आव्रजन पॉलिसीज़ की कठोर से कठोर आलोचना को भी उन षडयंत्रकारी थ्योरीज़ से जुड़े बयानों से स्पष्ट रूप से अलग किया जा सकता है जो सुरक्षित विशिष्टता वाले समूहों के लिए नुकसानदेह हैं.
I.कंटेंट नियम
नफ़रत फैलाने वाली भाषा
बोर्ड के बहुसंख्य सदस्य इस नतीजे पर पहुँचे कि इस केस का कंटेंट नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े Meta के कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करता और वास्तव में वह आव्रजन के विषय पर जनमत की सुरक्षित अभिव्यक्ति का एक उदाहरण है, भले ही वह विवादास्पद हो. यूज़र द्वारा पोस्ट की गई ज़ेमौर के इंटरव्यू की 50 सेकंड की क्लिप में हिंसा का कोई आह्वान नहीं है, न ही उसमें कमज़ोर समूहों को नीचा दिखाया गया है या उनके लिए नफ़रत फैलाने वाली भाषा उपयोग की गई है. यह तथ्य कि ज़ेमौर पर पहले नफ़रत फैलाने वाली भाषा के उपयोग के लिए मुकदमे चल चुके हैं और वे दोषी पाए गए हैं या यह कि पोस्ट की थीम्स से ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी का आभास होता है, – कई लोग मानते हैं कि इससे अप्रवासियों और अल्पसंख्यक समूहों के लोगों के खिलाफ़ हिंसा भड़की है – ऐसी पोस्ट को हटाने के लिए उचित कारण नहीं है जो Meta के स्टैंडर्ड का उल्लंघन नहीं करती. कंटेंट को उल्लंघन करने वाला मानने के लिए, पॉलिसी के अनुसार उसमें दो एलिमेंट का होना ज़रूरी है: (i) “सीधा हमला” और (ii) “सुरक्षित विशिष्टता” वाला समूह जिस पर सीधा हमला किया गया है. अन्य तरह के बयानों के अलावा Meta, “सीधे हमलों” को “कॉल ऑफ़ एक्शन के रूप में बहिष्कार या अलगाव” का एक रूप मानता है, जैसा कि ऊपर सेक्शन 4 में विस्तार से बताया गया है. इसके अलावा, पॉलिसी बनाने के कारण में यह स्पष्ट किया गया है कि Meta “आव्रजन पॉलिसीज़ पर कमेंटरी और उनकी आलोचना” की परमिशन देता है.
बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों के लिए, वीडियो में ज़ेमौर की टिप्पणियाँ मुख्य रूप से कल्पित डेमोग्राफ़िक जानकारी पर केंद्रित हैं जो उन्होंने अफ़्रीका, यूरोप और “उपनिवेशीकरण” के लिए प्रस्तुत की है. वीडियो में अन्य बातों के अलावा “ताकि ताकत का संतुलन पलट जाए” और “जब एक यूरोपियन के मुकाबले चार अफ़्रीकी लोग होंगे, तब क्या होगा? अफ़्रीका, यूरोप में उपनिवेशीकरण कर रहा है, खास तौर पर फ़्रांस में” कहा गया है. ज़ेमौर की टिप्पणियों में कोई सीधा हमला नहीं है और वास्तव में उनमें “द ग्रेट रिप्लेसमेंट” शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है या उस थ्योरी का सीधा उल्लेख नहीं किया गया है. उसमें यूरोप से किसी भी समूह के बहिष्कार का सीधा आह्वान नहीं है और न ही अफ़्रीकी लोगों के खिलाफ़ ऐसा कोई कथन है जिसे नुकसानदेह रूढ़िवाद, गाली या अन्य सीधा हमला माना जाए. हालाँकि बोर्ड ने इस बात को चिंताजनक पाया कि Meta, अफ़्रीकी लोगों को सुरक्षित विशिष्टता वाला समूह नहीं मानता जबकि Meta की पॉलिसीज़ और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून, दोनों में राष्ट्रीय मूल, नस्ल और धर्म को सुरक्षा विशिष्टता माना गया है. पूरे कंटेंट में अफ़्रीकी लोगों की बात की गई है. अफ़्रीका कई देशों का समूह है – इसलिए “अफ़्रीकी लोगों” का तात्पर्य उन लोगों से है जो अफ़्रीका के देशों में रहते हैं. दूसरा, फ़्रांस में आव्रजन के बारे में ज़ेमौर की पिछली टिप्पणियों के संदर्भ में, “अफ़्रीकी लोगों” का उपयोग अश्वेत अफ़्रीकी लोगों के लिए प्रॉक्सी के रूप में किया गया है, खास तौर पर अश्वेतों और मुसलमान अफ़्रीकी लोगों के लिए.
खतरनाक संगठन और लोग
बोर्ड के बहुसंख्य सदस्य इस नतीजे पर भी पहुँचे कि कंटेंट से खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़ी Meta की पॉलिसी का उल्लंघन नहीं होता क्योंकि उसमें ऐसे एलिमेंट मौजूद नहीं हैं जिनका हिंसा भड़काने वाले व्यापक षडयंत्रकारी नेटवर्क के भाग के रूप में कंटेंट का आकलन करने के लिए होना ज़रूरी है.
जैसा कि ऊपर सेक्शन 6 में बताया गया है कि Meta ने षडयंत्रकारी थ्योरीज़ की चर्चा करने वाले उस कंटेंट के लिए विशिष्ट पॉलिसी विकल्पों पर विचार किया जो अन्यथा किसी पॉलिसी का उल्लंघन नहीं करता लेकिन वह इस नतीजे पर पहुँचा कि फ़िलहाल अगर किसी विकल्प को लागू किया जाता है तो उससे बहुत बड़ी मात्रा में राजनैतिक बयानबाज़ी के हटने का खतरा होगा. बोर्ड ने इस पॉलिसी निर्माण प्रक्रिया के बारे में बोर्ड द्वारा पूछे गए सवालों पर Meta के जवाब में दी गई जानकारी पूरी न होने पर चिंता जताई. बोर्ड ने नोट किया कि कंपनी ने इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी कि उसने कौन-सी रिसर्च की, कौन-सी जानकारी कलेक्ट की, उसकी आउटरीच का दायरा क्या था, उसने किन विशेषज्ञों से बात की और न ही उसने यह बताया कि उसने किन अलग-अलग पॉलिसी विकल्पों का विश्लेषण किया. बोर्ड इस बात से भी चिंतित है कि Meta ने आम लोगों के साथ पॉलिसी निर्माण प्रक्रिया और उसके परिणाम की जानकारी शेयर नहीं करना चुना.
बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्य समझते हैं कि भले ही कंटेंट अप्रत्यक्ष रूप से एक जैसी सुरक्षित विशिष्टताओं वाले कई समूहों (अश्वेत लोग, अरब और मुसलमान) को अप्रत्यक्ष रूप से टार्गेट करता है, नफ़रत फैलाने वाली भाषा और खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़ी Meta की पॉलिसी, उसकी फ़िलहाल मौजूद भाषा के अनुसार, इस तरह के कंटेंट को प्रतिबंधित नहीं करतीं. हालाँकि यह तथ्य कि पोस्ट में ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के ज़्यादा “सकारात्मक” भागों को ही दोहराया गया है, निर्णयात्मक नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप का सस्पेंशन केस में बोर्ड के फ़ैसले में, बोर्ड ने हाइलाइट किया कि Meta को “प्रभावशील यूज़र्स की पोस्ट का उस तरह आकलन करते रहना चाहिए जिस तरह से उन्हें फ़ॉलोअर्स समझ सकते हैं, भले ही उनके भड़काने वाले मैसेज को ऐसी भाषा में प्रस्तुत किया गया हो जिससे उन पर कोई ज़िम्मेदारी न आए.”
इसके बावजूद, जैसा कि सेक्शन 8.3 में विस्तार से बताया जाएगा, बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों को लगता है कि नफ़रत फैलाने वाली षडयंत्रकारी थ्योरीज़, जैसे ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरीज़, को फैलाने वाले कंटेंट को लेकर Meta का नज़रिया उन विभिन्न पॉलिसीज़ के लक्ष्यों से अलग है जिनका निर्माण कंपनी ने डर और बहिष्कार का माहौल बनने से रोकने के लिए किया है. इससे ऑनलाइन और ऑफ़लाइन नुकसान से सुरक्षित अल्पसंख्यकों पर असर पड़ता है. यद्यपि बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्य पूरी तरह इस बात से सहमत हैं कि Meta की पॉलिसीज़ में उन सभी मुद्दों (जैसे आव्रजन) की आलोचना और उन पर चर्चा की परमिशन देनी चाहिए जो लोकतांत्रिक समुदायों के लिए प्रासंगिक हैं. उन्हें ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी जैसी कुछ खास षडयंत्रकारी बातों के ऑफ़लाइन नुकसान को ध्यान में रखते हुए, कमज़ोर समूहों के खिलाफ़ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हमलों के प्रसार को रोकने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश भी देना चाहिए.
II. पारदर्शिता
Meta अपने ट्रांसपेरेंसी सेंटर में नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े कम्युनिटी स्टैंडर्ड में इस बारे में कुछ इनसाइट उपलब्ध कराता है कि वह आव्रजन से जुड़े कंटेंट से किस तरह का व्यवहार करता है. इसमें कंपनी ने यह जानकारी दी है कि शरणार्थियों, अप्रवासियों, प्रवासियों और शरण चाहने वाले लोगों को सबसे गंभीर हमलों से सुरक्षा प्राप्त है. नफ़रत फैलाने वाली भाषा के पॉलिसी बनाने के कारण से जुड़ी 2017 की एक न्यूज़रूम पोस्ट में, Meta ने कुछ अतिरिक्त जानकारी दी है. हालाँकि, कंपनी ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया है कि वह ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी से जुड़े कंटेंट से कैसा व्यवहार करती है. 2017 की पोस्ट में इस विषय के लिए प्रासंगिक जानकारी मौजूद है, लेकिन उसे ऊपर सेक्शन 6 में बताई गई 2021 की पॉलिसी निर्माण प्रक्रिया के बाद अपडेट नहीं किया गया है. Meta, लोगों को दिखाई देने वाली पॉलिसी में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताता है कि आव्रजन की चर्चाओं के संदर्भ में बहिष्कार के आह्वान की परमिशन है. यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस संदर्भ में अप्रत्यक्ष या छिपे हुए हमलों का समाधान किस तरह किया जाता है.
8.2 Meta की मानवाधिकारों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों का अनुपालन
बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों ने पाया कि कंटेंट को बनाए रखना Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के अनुसार है. कुछ अल्पसंख्य सदस्यों का मानना है कि मानवाधिकार से जुड़ी अपनी ज़िम्मेदारियों के अनुसार को Meta को अपनी पॉलिसीज़ का इस तरह पुनर्निर्माण करना चाहिए कि उसकी सेवाओं का दुरुपयोग ऐसी षडयंत्रकारी थ्योरीज़ को बढ़ावा देने वाले लोगों द्वारा न किया जा सके जिनसे ऑनलाइन और ऑफ़लाइन नुकसान होता है.
अभिव्यक्ति की आज़ादी (अनुच्छेद 19 ICCPR)
ICCPR का अनुच्छेद 19, अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के लिए व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें “जानकारी और हर तरह के आइडिया माँगने, देने और लेने की आज़ादी” शामिल है. इस तरह की जानकारी और आइडिया में “राजनैतिक बातचीत” और “सार्वजनिक मामलों” पर कमेंटरी शामिल है. (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 11). मानवाधिकार कमिटी ने कहा कि इस अधिकार के दायरे में “ऐसी अभिव्यक्ति भी आती है जिसे अत्यंत आपत्तिजनक माना जा सकता है, यद्यपि इस तरह की अभिव्यक्ति को अनुच्छेद 19, पैराग्राफ़ 3 और अनुच्छेद 20 के प्रावधानों के अनुसार अन्य लोगों के अधिकारों या प्रतिष्ठा की रक्षा करने या भेदभावश शत्रुता या हिंसा के उकसावे को रोकने के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 11).
आव्रजन के बारे में सार्वजनिक बहस के संदर्भ में, संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा ने “अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा करने की उसकी प्रतिबद्धता नोट की, इस बात को मानते हुए कि खुली और स्वतंत्र चाचर् से आव्रजन के सभी पहलुओं को व्यापक रूप से समझने में मदद मिलती है.” वह आगे “समाज के अन्य सभी भागों के साथ मिलकर आव्रजन और अप्रवासियों पर खुली और साक्ष्य आधारित सार्वजनिक बातचीत को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध है. इससे इस संबंध में एक अधिक वास्तविक, मानवोचित और रचनात्मक समझ का निर्माण करने में मदद मिलती है,” (A/RES/73/195, पैरा 33). आव्रजन और उससे संबंधित पॉलिसीज़ – जो न सिर्फ़ फ़्रांस में बल्कि पूरी दुनिया में राजनैतिक प्रक्रियाओं के लिए अत्यंत विवादास्पद और प्रासंगिक हैं – Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर बहस के लिए विधिसम्मत विषय हैं. बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों के लिए, सार्वजनिक बहस की संभावित जटिलताओं को देखते हुए, Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर इस तरह के बयानों पर प्रतिबंध लगाने से अभिव्यक्ति की आज़ादी का स्पष्ट उल्लंघन होगा और ऐसा करना खतरनाक होगा. बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों के लिए, ऐसा ठीक-ठीक इसलिए है क्योंकि किसी लोकतांत्रिक समाज के लिए खुली और साक्ष्य आधारित चर्चाएँ इतनी प्रासंगिक हैं कि अगर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी जैसी षडयंत्रकारी थ्योरीज़ फैल जाती हैं, तो उनसे बहुत नुकसान होगा. जैसा कि इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्ट्रेटेजिक डायलॉग ने रिपोर्ट किया कि थ्योरी को ब्रॉडकास्ट करने के लिए उपयोग किए जाने वाले तरीकों में “नीचा दिखाने वाले नस्लवादी मीम, डेमोग्राफ़िक डेटा को तोड़-मरोड़कर और गलत ढंग से पेश करना और गलत साबित हुए विज्ञान का उपयोग करना शामिल है.”
जहाँ राज्य, अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाता है, वहाँ प्रतिबंधों को वैधानिकता, वैधानिक लक्ष्य और आवश्यकता तथा आनुपातिकता की शर्तों को पूरा करना चाहिए (अनुच्छेद 19, पैरा. 3, ICCPR). इन आवश्यकताओं को अक्सर “तीन भागों वाला परीक्षण” कहा जाता है. Meta की स्वैच्छिक मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं को समझने के लिए बोर्ड इस फ़्रेमवर्क का उपयोग करता है - रिव्यू में मौजूद कंटेंट से जुड़े व्यक्तिगत फ़ैसले के लिए और यह जानने के लिए कि कंटेंट गवर्नेंस के प्रति Meta के व्यापक नज़रिए के बारे में यह क्या कहता है. जैसा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे में संयुक्त राष्ट्र के खास रैपर्टर में कहा गया है कि भले ही “कंपनियों का सरकारों के प्रति दायित्व नहीं है, लेकिन उनका प्रभाव इस तरह का है जो उनके लिए अपने यूज़र की सुरक्षा के बारे में इस तरह के सवालों का मूल्यांकन करना ज़रूरी बनाता है” (A/74/486, पैरा. 41).
I. वैधानिकता (नियमों की स्पष्टता और सुलभता)
वैधानिकता के सिद्धांत के लिए यह ज़रूरी है कि अभिव्यक्ति को सीमित करने वाले नियमों को एक्सेस किया जा सकता हो और वे स्पष्ट हों. उन्हें पर्याप्त सटीकता के साथ बनाया गया हो ताकि लोग अपने व्यवहार को उसके अनुसार बदल सकें (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 25). इसके अलावा, ये नियम “उन लोगों को अभिव्यक्ति की आज़ादी को प्रतिबंधित करने के निरंकुश अधिकार नहीं दे सकते जिन पर इन्हें लागू करने की ज़िम्मेदारी है” और नियमों में "उन लोगों के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन भी होना ज़रूरी है जिन पर इन्हें लागू करने की ज़िम्मेदारी है ताकि वे यह पता लगा सकें कि किस तरह की अभिव्यक्ति को उचित रूप से प्रतिबंधित किया गया है और किसे नहीं," (पूर्वोक्त). ऑनलाइन अभिव्यक्ति की निगरानी करने वाले नियमों के मामले में, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर संयुक्त राष्ट्र के खास रैपर्टर में कहा गया है कि उन्हें स्पष्ट और विशिष्ट होना चाहिए (A/HRC/38/35, पैरा. 46). Meta के प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करने वाले लोगों के लिए ये नियम एक्सेस करने और समझने लायक होने चाहिए और उनके एन्फ़ोर्समेंट के संबंध में कंटेंट रिव्यूअर्स को स्पष्ट मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए.
Meta की किसी भी मौजूदा पॉलिसी में इस केस में शामिल कंटेंट को “विशेष और स्पष्ट रूप से” प्रतिबंधित नहीं किया गया है. बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों के अनुसार, अगर कोई साधारण व्यक्ति नफ़रत फैलाने वाली भाषा का कम्युनिटी स्टैंडर्ड या Meta की 2017 की “कठिन सवाल” ब्लॉग पोस्ट (कम्युनिटी स्टैंडर्ड से लिंक) पढ़ता है, तो उसे यही लगेगा कि अप्रवासियों और प्रवासियों पर सिर्फ़ सबसे गंभीर हमलों को ही हटाया जाएगा, क्योंकि Meta ने स्पष्ट रूप से यह संकेत दिया है कि वह अपने प्लेटफ़ॉर्म पर आव्रजन पॉलिसीज़ पर कमेंटरी और उसकी आलोचना को परमिशन देना चाहता है. बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों ने पाया कि यह प्रतिबद्धता, Meta की मानवाधिकार से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के अनुसार है. बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों के अनुसार, नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी पॉलिसी का लक्ष्य बहिष्कार या अलगाव का माहौल बनने से रोकना है, जिसमें ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी जैसी नुकसानदेह षडयंत्रकारी थ्योरीज़ अपना योगदान देती हैं. यह देखते हुए कि ऐसी थ्योरीज़ से जुड़ा कंटेंट आम तौर पर कमज़ोर और अल्पसंख्यक समूहों को टार्गेट करता है और उनकी गरिमा को चोट पहुँचाता है, एक साधारण यूज़र नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी Meta की पॉलिसी में इस तरह के कंटेंट से सुरक्षा की उम्मीद करता है.
खतरनाक संगठन और लोगों से जुड़ी Meta की मौजूदा पॉलिसी में, इस केस से जुड़े कंटेंट को प्रतिबंधित करने का कोई प्रावधान नहीं है. बहुसंख्य सदस्यों के अनुसार, भले ही Meta विशेष और स्पष्ट रूप से अपने प्लेटफ़ॉर्म पर ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी से जुड़े कंटेंट को प्रतिबंधित करता हो, इस केस का कंटेंट संदेहास्पद नहीं है क्योंकि थ्योरी के नाम या थ्योरी के एलिमेंट्स की व्याख्या में ऐसा कुछ नहीं है जिसे षडयंत्रकारी और नुकसानदेह माना जाए. पोस्ट में यह आरोप नहीं लगाया गया है कि लोगों के किसी खास समूह का यूरोप में आव्रजन प्रवाह किसी गुप्त षडयंत्र का भाग है जिसमें छिपे हुए एजेंडे वाले लोग शामिल हैं.
II.वैधानिक लक्ष्य
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर किसी भी प्रतिबंध में ICCPR में सूचीबद्ध वैधानिक लक्ष्यों में से कम से कम किसी एक का अनुसरण भी किया जाना चाहिए, जिसमें "अन्य लोगों के अधिकार" की रक्षा शामिल है. “’अधिकार’ शब्द में मानवाधिकार भी शामिल हैं जैसा कि प्रतिज्ञापत्र और ज़्यादा सामान्य रूप से अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून में बताया गया है,” ( सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 28).
कई फ़ैसलों में, बोर्ड ने पाया है कि नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़ी Meta की पॉलिसी, जिसका लक्ष्य लोगों को नफ़रत फैलाने वाली भाषा के नुकसान से बचाना है, का एक वैधानिक लक्ष्य है जिसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून मानकों की मान्यता प्राप्त है (क्निन कार्टून फ़ैसला देखें). यह जीवन के अधिकार की रक्षा करता है (अनुच्छेद 6, पैरा. 1, ICCPR). साथ ही यह नस्ल, जातीयता और राष्ट्रीय मूल पर आधारित अधिकारों सहित समानता और भेदभाव न होने देने के अधिकार की भी रक्षा करता है (अनुच्छेद 2, पैरा. 1, ICCPR; अनुच्छेद 2, ICERD). बोर्ड ने पहले यह भी पाया है कि खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़ी Meta की पॉलिसी, दूसरे लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के वैधानिक लक्ष्य के साथ असली दुनिया को हो सकने वाले नुकसान को रोकना और बाधित करना चाहती है (अल जज़ीरा की शेयर की गई पोस्ट फ़ैसला देखें). इसके विपरीत बोर्ड ने बार-बार यह नोट किया है कि अपमान से लोगों की रक्षा करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी को प्रतिबंधित करना वैधानिक लक्ष्य नहीं है (ज़्वार्टे पिएट का चित्रण जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपर्टर का उल्लेख किया गया है, रिपोर्ट A/74/486, पैरा. 24 और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप का सस्पेंशन देखें), क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून द्वारा उन्मुक्त अभिव्यक्ति को बहुत ज़्यादा अहमियत दी गई है (सामान्य कमेंट सं. 34, पैरा. 38).
III. आवश्यकता और आनुपातिकता
आवश्यकता और आनुपातिकता के सिद्धांत के अनुसार यह ज़रूरी है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी से संबंधित प्रतिबंध "रक्षा करने के उनके कार्य को सही तरीके से पूरा करने वाले होने चाहिए; उनसे उन लोगों के अधिकारों में कम से कम हस्तक्षेप होना चाहिए, जिन्हें उन प्रतिबंधों से होने वाले रक्षात्मक कार्यों का लाभ मिल सकता है [और] जिन हितों की सुरक्षा की जानी है, उसके अनुसार ही सही अनुपात में प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए," (सामान्य टिप्पणी सं. 34, पैरा. 34). Meta जैसी कंपनी के पास उपलब्ध जवाबों की प्रकृति और रेंज, सरकार के पास इनकी उपलब्धता से अलग है और वे आपराधिक दंडों, उदाहरण के लिए, के मुकाबले अक्सर अधिकारों के कम गंभीर उल्लंघन प्रदर्शित करते हैं. मानवाधिकारों से जुड़ी अपनी ज़िम्मेदारियों के भाग के रूप में, सोशल मीडिया कंपनियों को समस्या वाले कंटेंट को हटाने के बजाय उस पर कई तरह की संभावित प्रतिक्रियाओं पर विचार करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध कम से कम हों ( A/74/486, पैरा. 51).
संभावित रूप से हिंसक कंटेंट से होने वाले जोखिमों का आकलन करते समय, बोर्ड छह भागों वाले परीक्षण से मार्गदर्शन लेता है जिसकी जानकारी रबात एक्शन प्लान में दी गई है. इसमें भेदभाव, शत्रुता या हिंसा के उकसावे का समाधान किया गया है (OHCHR, A/HRC/22/17/परि.4, 2013). परीक्षण में संदर्भ, वक्ता, इरादे, कंटेंट और रूप, अभिव्यक्ति के फैलाव के दायरे और तात्कालिक नुकसान की आशंका पर विचार किया जाता है.
बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों के अनुसार, इस केस में कंटेंट को हटाना न तो ज़रूरी था और न ही आनुपातिक. रबात परीक्षण इस बात पर ज़ोर देता है कि बयान का कंटेंट और रूप, “उकसावे का एक महत्वपूर्ण एलिमेंट” है. इस केस में ज़ेमौर के कमेंट वाले जिस कंटेंट का रिव्यू किया गया है, उसे यूज़र द्वारा 50 सेकंड की क्लिप के रूप में रीप्रोड्यूस करके पोस्ट किया गया है. कंटेंट, ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के षडयंत्रकारी एलिमेंट्स से सीधे नहीं जुड़ा है और वीडियो में हिंसा या भड़काऊ इमेजरी जैसे उकसाने वाले एलिमेंट नहीं हैं. कमेंट और कैप्शन में भी हिंसा या बहिष्कार के सीधे आह्वान नहीं हैं. बोर्ड के बहुसंख्य सदस्य मानते हैं कि वक्ता द्वारा किसी अन्य स्थान पर कही गई बातों के आधार राजनैतिक रूप से विवादास्पद कंटेंट को हटाने से अभिव्यक्ति की आज़ादी का उल्लंघन होगा. ये सदस्य मानते हैं कि ज़ेमौर ने बस आँकड़ों को थोड़ा बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया है. इन सदस्यों ने यह भी नोट किया कि वीडियो में ज़ेमौर के कथनों का मुख्य विषय आव्रजन है, जो शायद आज के समय का सबसे प्रमुख राजनैतिक मुद्दा है.
बोर्ड के बहुसंख्य सदस्यों के अनुसार, इस केस का कंटेंट, Meta की मौजूदा पॉलिसीज़ का उल्लंघन नहीं करता (सेक्शन 8.1 देखें). हालाँकि, कंपनी ने ऐसी कई पॉलिसीज़ बनाई हैं जिनका लक्ष्य बहिष्कार और डर का ऐसा माहौल बनने से रोकना है जो न सिर्फ़ सुरक्षित अल्पसंख्यकों को ऑनलाइन रूप से प्रभावित करता है (बहिष्कृत समूहों की आवाज़ दबाना) बल्कि ऑफ़लाइन भी प्रभावित करता है. इन पॉलिसीज़ के तहत, यहूदी विरोधी और श्वेत लोगों को सर्वोच्च बताने वाली बातों के साथ-साथ हिंसा भड़काने वाले षडयंत्रकारी नेटवर्क के कंटेंट को भी मॉडरेट किया जाता है. ऐसे कंटेंट को हटाना, मानवाधिकारों से जुड़ी Meta की ज़िम्मेदारियों के अनुरूप है. जैसा कि ऊपर सेक्शन 2 में बताया गया है, ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी में यह तर्क दिया गया है कि मुख्य रूप से अफ़्रीका और एशिया से प्रवासी लोगों को यूरोप में बसाकर श्वेत लोगों को बेदखल करने का जान-बूझकर षडयंत्र रचा जा रहा है. ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी से जुड़ी बातों के प्रसार से नस्लवाद, नफ़रत और हिंसा को उकसावा मिला है जिसमें अप्रवासियों, अश्वेत यूरोपियन लोगों और मुसलमानों को निशाना बनाया गया है. बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह बस कोई निराकार विचार या विवादास्पद राय नहीं है बल्कि षडयंत्र की एक सामान्य थ्योरी है जिससे ऑनलाइन और ऑफ़लाइन नुकसान होता है. इससे निसंदेह रूप से कुछ खास अल्पसंख्यक समूहों के लिए बहिष्कार और डर का माहौल बनता है. Meta के प्लेटफ़ॉर्म पर यहूदी विरोधी कंटेंट के सामूहिक या संचयी, बड़े पैमाने पर और तेज़ गति से होने वाले प्रसार से होने वाले नुकसान का सबूत, जैसी कि यहूदी नरसंहार को नकारना (होलोकॉस्ट डिनायल) केस में चर्चा की गई है, ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी द्वारा हुए नुकसान के सबूत के ही समान है, जैसा कि सेक्शन 2 में बताया गया है. इन कारणों से, बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्य मानते हैं कि यह भेदभाव न करने के सिद्धांत और सुरक्षा और गरिमा की Meta की वैल्यू के खिलाफ़ है क्योंकि Meta ने यह तय किया है कि वह कुछ खास कमज़ोर अल्पसंख्यक समूहों की षडयंत्रकारी बातों से होने वाले बहिष्कार और भेदभाव से रक्षा करेगा, जबकि जोखिम की ऐसी ही स्थिति का सामना करने वाले अन्य लोगों को असुरक्षित छोड़ दिया गया है. बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों ने पाया कि ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी को ऊपर बताई गई अन्य षडयंत्रकारी बातों से अलग रखकर देखने के लिए Meta के नज़रिए में बदलाव करने की कोई ज़रूरत नहीं है, जिसे Meta अपनी मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों के अनुसार मॉडरेट करता है.
उपरोक्त के संबंध में, बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों के अनुसार, सोशल मीडिया कंपनियों को अलग-अलग कंटेंट को लेकर कोई चुनौती नहीं आ रही, बल्कि उन्हें चुनौती उस नुकसानदेह कंटेंट के एक साथ इकट्ठा होने के कारण आ रही है जिसे बड़े पैमाने पर और तेज़ गति से शेयर किया जा रहा है. बोर्ड ने बताया कि “नफ़रत फैलाने वाली भाषा के बढ़ते हुए नुकसानों का समाधान करने के लिए कंटेंट को मॉडरेट करना, भले ही जहाँ अभिव्यक्ति से सीधे हिंसा या भेदभाव के लिए न उकसाया जाता हो, कुछ परिस्थितियों में मानवाधिकारों के लिए Meta की ज़िम्मेदारियों के अनुरूप हो सकता है” (ज़्वार्टे पिएट का चित्रण और भारत के ओडिशा राज्य में सांप्रदायिक दंगे फ़ैसले देखें). 2022 में CERD ने इस बात पर चिंता जताई थी कि “[फ़्रांस में] नस्लीय और भेदभावपूर्ण बातचीत कितनी स्थायी और व्यापक है, खास तौर पर मीडिया और इंटरनेट पर.” अल्पसंख्य सदस्यों के अनुसार, ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी से जुड़े कंटेंट के इकट्ठे होने से “ऐसा माहौल बनता है जहाँ हिंसक कृत्यों को ज़्यादा सहन करने और समाज में भेदभाव करने की ज़्यादा आशंका होती है,” (ज़्वार्टे पिएट का चित्रण और भारत के ओडिशा राज्य में सांप्रदायिक दंगे फ़ैसले देखें). अल्पसंख्य सदस्यों ने हाइलाइट किया कि UNGP के तहत, "बिज़नेस एंटरप्राइज़ को ऐसे समूहों और आबादी के लोगों पर किसी खास मानवाधिकार असर पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए जिन्हें असुरक्षित होने और उपेक्षित होने का ज़्यादा खतरा हो सकता है" (UNGP, सिद्धांत 18 और 20). जैसा कि ऊपर सेक्शन 2 में बताया गया है, फ़्रांस में नस्लवाद के मुख्य शिकार अप्रवासी लोग हैं, खास तौर पर वे लोग जो अफ़्रीकी मूल के हैं या उनके वंशज हैं. 2023 के एक इंटरव्यू में फ़्रांस के आंतरिक सुरक्षा महानिदेशक ने अपनी मान्यता शेयर की कि चरमपंथी समूह, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो यह समझते हैं कि “ग्रेट रिप्लेसमेंट” को रोकने के लिए उन्हें कार्रवाई करनी होगी, देश के लिए गंभीर खतरा हैं.
भले ही Meta ने कहा है कि षडयंत्र की थ्योरी से जुड़े कंटेंट को मॉडरेट करने से “बहुत बड़ी मात्रा में राजनैतिक बयानों के हट जाने का खतरा होगा,” बोर्ड के अल्पसंख्य सदस्यों ने यह नोट किया कि इस बात को सपोर्ट करने के लिए कंपनी ने न तो कोई सबूत दिया और न ही कोई डेटा. इसके अलावा, Meta ने यह नहीं समझाया कि ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के साथ ही ऐसा क्यों है और, उदाहरण के लिए, श्वेत लोगों को सर्वोच्च बताने वाले या यहूदी विरोधी कंटेंट के साथ ऐसा क्यों नहीं है, जबकि इन्हें भी षडयंत्र फैलाने वाली थ्योरी समझा जा सकता है. ऊपर बताए गए कारणों को देखते हुए, अल्पसंख्य सदस्यों के अनुसार, Meta को अपनी पॉलिसीज़ का रिव्यू करके उस कंटेंट का समाधान करना चाहिए जो ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी को बढ़ावा देता है, बशर्ते कंपनी के पास ऐसे पर्याप्त सबूत न हों: (i) जो बताएँ कि इस तरह के कंटेंट के प्रसार से नुकसान का कोई खतरा नहीं है, जैसी कि इस फ़ैसले में चर्चा की गई है; या (ii) जो दिखाएँ कि सुरक्षित राजनैतिक बयानबाज़ी के इस तरह के कंटेंट को मॉडरेट करना अनुपातहीन होगा. अन्य विकल्पों के अलावा, आनुपातिक जवाब के लिए, Meta एक ऐसी पॉलिसी बनाने पर विचार कर सकता है जिसका उपयोग सिर्फ़ एस्केलेशन के समय किया जाए ताकि ऐसे कंटेंट को हटाया जा सके जिसमें ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी का खुलेआम समर्थन किया गया है और साथ ही सुरक्षित राजनीतिक बयानबाज़ी पर उसका कोई असर न पड़े. या वह Meta की खतरनाक संगठनों और लोगों से जुड़ी पॉलिसी में ऐसे लोगों को चिह्नित करने पर विचार कर सकता है जो हिंसा उकसाने वाले षडयंत्रकारी नेटवर्क के भाग के रूप में ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी से सीधे जुड़े हैं.
बहुसंख्य सदस्यों को इस बात में संदेह है कि ऐसी कोई पॉलिसी बनाई जा सकती है जिसके तहत इस कंटेंट को उल्लंघन करने वाला माना जाए और जो वैधानिकता, आवश्यकता और आनुपातिकता की ज़रूरतें भी पूरी करे, खास तौर पर उस स्थिति में जब कंटेंट में “ग्रेट रिप्लेसमेंट” या उससे कोई मिलता-जुलता शब्द मौजूद न हो. ऐसे कंटेंट को हटाने की कोई भी कोशिश, भले ही उसे कोडेड रेफ़रेंस के रूप में किया जाए, बड़ी मात्रा में सुरक्षित राजनैतिक अभिव्यक्ति वाले कंटेंट को हटा देगी. जिस कंटेंट को स्पष्ट सुरक्षा प्राप्त है, उसे “संबद्धता के कारण दोषी” नहीं माना जाना चाहिए, चाहे ऐसा वक्ता की पहचान के कारण हो या किसी नफ़रत फैलाने वाली विचारधारा से मिलता-जुलता दिखाई देने के कारण हो.
9. ओवरसाइट बोर्ड का फ़ैसला
ओवरसाइट बोर्ड ने कंटेंट को बनाए रखने के Meta के फ़ैसले को कायम रखा है.
10. सुझाव
ट्रांसपेरेंसी
1. Meta को नफ़रत फैलाने वाली भाषा से जुड़े अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड की अपनी भाषा में इस बात की ज़्यादा जानकारी देना चाहिए कि किस तरह वह आव्रजन से जुड़ी चर्चाओं को लोगों की अप्रवासी स्थिति के आधार पर उन्हें टार्गेट करने वाले नुकसानदेह बयानों से अलग करता है. इसमें यह बताना भी शामिल है कि नफ़रत फैलाने वाली षडयंत्रकारी थ्योरीज़ का प्रसार करने वाले कंटेंट से कंपनी किस तरह निपटती है. ऐसा यूज़र्स को यह जानकारी देने के लिए ज़रूरी है कि Meta किस तरह नुकसानदेह षडयंत्रकारी थ्योरीज़ के संभावित ऑफ़लाइन नुकसानों का समाधान करते हुए आव्रजन के बारे में राजनैतिक बयानों की रक्षा करता है.
बोर्ड इसे तब लागू मानेगा जब Meta एक अपडेट प्रकाशित करके यह बताएगा कि वह ग्रेट रिप्लेसमेंट थ्योरी के संदर्भ में आव्रजन से जुड़ी चर्चाओं से किस तरह व्यवहार कर रहा है और जब वह इस अपडेट को अपने ट्रांसपेरेंसी सेंटर में प्रमुखता से लिंक करेगा.
*प्रक्रिया संबंधी नोट:
ओवरसाइट बोर्ड के फ़ैसले पाँच मेंबर्स के पैनल द्वारा लिए जाते हैं और उन्हें बोर्ड के बहुमत के आधार पर स्वीकृति दी जाती है. ज़रूरी नहीं है कि बोर्ड के फ़ैसले, सभी सदस्यों की निजी राय दर्शाएँ.
इस केस के फ़ैसले के लिए, बोर्ड की ओर से स्वतंत्र रिसर्च करवाई गई थी. बोर्ड को Duco Advisers की सहायता भी मिली, जो भौगोलिक-राजनैतिक, विश्वास और सुरक्षा और टेक्नोलॉजी के आपसी संबंध पर काम करने वाली एक एडवाइज़री फ़र्म है. Memetica ने भी विश्लेषण उपलब्ध कराया जो सोशल मीडिया ट्रेंड पर ओपन-सोर्स रिसर्च में एंगेज होने वाला संगठन है. Lionbridge Technologies, LLC कंपनी ने भाषा संबंधी विशेषज्ञता की सेवा दी, जिसके विशेषज्ञ 350 से भी ज़्यादा भाषाओं में कुशल हैं और वे दुनियाभर के 5,000 शहरों से काम करते हैं.